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रिटायरमेंट को बनाइए ज्यादा आरामदायक, रिवर्स मॉर्गेज है आय बढ़ाने में मददगार

रिवर्स मॉर्गेज में देश के वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति जैसे घर आदि को सरकार के हवाले कर उसकी मौजूदा कीमत के आधार पर अपनी आय की व्यवस्था कर सकते हैं।

Sachin Chaturvedi Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published on: December 02, 2017 18:28 IST
Basics of Reverse Mortgage: रिटायरमेंट को बनाइए ज्यादा आरामदायक, रिवर्स मॉर्गेज बनाएगा जिंदगी शानदार- India TV Paisa
Basics of Reverse Mortgage: रिटायरमेंट को बनाइए ज्यादा आरामदायक, रिवर्स मॉर्गेज बनाएगा जिंदगी शानदार

नई दिल्ली। भारत में व्यक्ति की औसत आयु पिछले वर्षों से लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ-साथ डायबटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी अब आम हो चली हैं। ये बीमारियां लोगों को उनको उम्रदराज होने पर ज्यादा परेशान करती हैं। ऐसे में रिटायरमेंट के बाद पेंशन की पर्याप्त व्यवस्था के बाद भी कई बार बीमारियों के खर्च बुढ़ापे को कठिन बना देते हैं। ऐसी स्थिति में वरिष्ठ नागरिकों के लिए 2007 में सरकार की ओर से शुरू की गई रिवर्स मॉर्गेज स्कीम एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।

क्या होता है रिवर्स मोर्गेज?

रिवर्स मॉर्गेज दरअसल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें देश के वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति जैसे घर आदि को सरकार के हवाले कर उसकी मौजूदा कीमत के आधार पर हर महीने या तिमाही अपनी आय की व्यवस्था कर सकते हैं। सरल भाषा में समझें तो रिवर्स मोर्गेज सामान्यत: होम लोन से विपरीत होता है। इसमें वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति को कर्जदाता के (बैंक या कोई अन्य वित्तीय संस्थान) पास गिरवी रख देता है और इसके एवज में एक नियमित आय लेता रहता है। कर्ज लेने वाले वरिष्ठ नागरिक जब तक जीवित रहते हैं, तब तक इस घर में रहते हैं। लेकिन कर्ज संपत्ति की कुल कीमत या अधिकतम 20 साल तक के लिए ही मिलता है। रिवर्स मोर्गेज उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायक है, जिन्हें नियमित आय की जरूरत होती है और साथ ही जिनकी प्रॉपर्टी आसानी से बिक न रही हो।

कैसे काम करता है रिवर्स मॉर्गेज

जब घर को गिरवी रखा जाता है तब बैंक इसकी कीमत का मूल्यांकन प्रॉपर्टी की मांग, मौजूदा समय में प्रॉपर्टी की कीमत और घर की हालत को देखते हुए तय करता है। इसके बाद बैंक कर्ज लेने वाले को लोन की राशि तय करके बताता है, जिसके बाद ब्याज व कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए हर महीने भुगतान किया जाता है। इस मासिक भुगतान को रिवर्स EMI भी कहा जाता है। यह कर्ज, संपत्तिधारक को एक निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है। यह पेमेंट मासिक या तिमाही आधार पर किया जा सकता है। हर पेमेंट के बाद वरिष्ठ नागरिक की उस घर में हिस्सेदारी कम होती चली जाती है। लेकिन रहने का अधिकार कर्ज लेने वाले व्यक्ति को पूरे जीवन के लिए होता है।

उदाहरण से समझिए

दिल्ली के पश्चिम विहार में रहने वाले डॉ मेहता 5 साल पहले रिटायर हो चुके हैं। पिछले 35 वर्षों से मेहता जी अपनी पत्नी के साथ अपने मकान में रह रहे हैं। मेहता जी के दोनों बच्चे विदेश में सेटल हैं। 60 वर्ष की आयु के बाद मेहता जी का मन अपना देश छोड़ कर बच्चों पर आश्रित होने का नहीं है। मेहता जी को हृदय रोग और उनकी पत्नी डायबिटीज की मरीज हैं। दवाइयों के कारण उनका मासिक खर्चा ज्यादा है। इन खर्चों को उठाने के लिए उनकी पेंशन पर्याप्त नहीं है। ऐसे में मेहता जी अपनी मासिक आय को बढ़ाना चाहते हैं, जिससे उनको अपने बच्चों से मदद न लेनी पड़े। इस समस्या के समाधान के लिए जब मेहता जी अपने बैंक गए तो बैंक अधिकारी ने उन्हे रिवर्स मोर्गेज की राय दी। मेहता जी ने अपने मकान के कागज बैंक में गिरवी रख अपने लिए नियमित आय का साधन तलाश लिया।

रिवर्स मोर्गेज में किन बातों का रखें ख्याल

  • घर की कुल कीमत का 60 फीसदी से ज्यादा लोन की राशि नहीं हो सकती।
  • मोर्गेज की अधिकतम अवधि 15 वर्ष और न्यूनतम 10 वर्ष होती है। हालांकि कुछ बैंक 20 वर्षों की अधिकतम अवधि का भी विकल्प देते हैं।
  • मासिक, तिमाही, सालाना और लंप सम पेमेंट का विकल्प होता है।
  • कर्जदाता को हर पांच साल के बाद प्रॉपर्टी का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।
  • यदि इस दौरान वैल्यूएशन बढ़ जाती है तो कर्ज लेने वाले के पास लोन की राशि बढ़ाने का विकल्प होता है।
  • रिवर्स मोर्गेज से मिली राशि आय नहीं लोन होती है। इसलिए इसपर कोई टैक्स नहीं लगाया जाता।
  • रिवर्स मोर्गेज की ब्याज दरें फिक्स्ड या फ्लोटिंग होती हैं। यह दर बाजार में चल रही ब्याज दरों को ध्यान में रखकर तय की जाती हैं।

कौन लोग रिवर्स मोर्गेज का फायदा उठा सकते हैं?

  • घर के मालिक की उम्र 60 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए। अगर पत्नी को-एप्लीकैंट हैं तो उनकी आयु 58 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • सेल्फ एक्वायर्ड, सेल्फ ऑक्यूपाइड रेजीडेंशियल हाउस या फ्लैट भारत में होने चाहिए।
  • प्रॉपर्टी विवादित न हो।
  • प्रॉपर्टी 20 वर्ष से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए।
  • प्रॉपर्टी रहने वाले व्यक्तियों का स्थायी प्रथम एड्रेस होना चाहिए।

रिवर्स मोर्गेज को कैसे करें सेटल

रिवर्स मोर्गेज लोन कर्ज लेने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी की मृत्यु हो जाए या अपना मकान बेचना चाहे, दोनों ही स्थिति में पूरे बकाया कर्ज का भुगतान करना होगा। बैंक पहले सबसे नजदीकी रिश्तेदार से सेटलमेंट की मांग करता है। अगर वह सेटल करने में विफल रहते हैं तो बैंक घर को बेचकर रिकवरी कर लेता है।

रिवर्स मोर्गेज से जुड़ी अन्य बातें

  • लोन की प्री पेमेंट- कर्ज लेने वाले किसी भी समय लोन की पूरी राशि का भुगतान कर सकते हैं। इस दौरान किसी भी तरह की पैनल्टी या चार्जेस नहीं लगाए जाते।
  • लोन अवधि के पूरे होने पर भी घर में रह सकते हैं। अगर कर्ज लेने वाला लोन की अवधि पूरी होने पर भी घर में रहना चाहे तो वह रह सकता है। हालाकि बैंक संस्थान लोन अवधि के पूरा होने के बाद मासिक पेमेंट नहीं देगा। कर्ज लेने वाले की मृत्यु के बाद ही लोन सेटल होगा।
  • पति या पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाए तो- अगर एक की मृत्यु हो जाए तो उस स्थिति में भी दूसरा व्यक्ति घर में रहता रहेगा। दोंनों की मृ्त्यु के बाद ही लोन की सेटलमेंट की जाएगी।

लोन अवधि पूरी होने से पहले कर्जदाता लोन बंद करवा सकता है- ऐसा तभी होगा अगर-

  • कर्ज लेने वाला घर में पूरे एक साल तक नहीं रहे।
  • अगर कर्ज लेने वाले ने प्रॉपर्टी टैक्स का भुगतान न किया हो।
  • अगर कर्जदाता खुद को दिवालिया घोषित कर दे।
  • अगर मोर्गेज प्रॉपर्टी को दान या त्याग कर दे।
  • अगर कर्ज लेने वाला रेजीडेंशियल प्रॉप्रटी में बदलाव करे।

रिवर्स मोर्गेज के नुकसान

  • लंबी कागजी प्रक्रिया- बैंक प्रॉपर्टी से जुड़े अनेक दस्तावेजों की मांग करता है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन हो सकती है।
  • सीमित मासिक राशि- महीने की राशि तय होती है। इमरजेंसी के समय इस राशि को बढ़वाया नहीं जा सकता।

लोगों में जागरूकता की कमी

रिवर्स मोर्गेज स्कीम वर्ष 2007 में लॉन्च की गई थी। लेकिन इसको लेकर लोगों में जागरूकता काफी कम है। कई बैंकों की ओर से लोन की अधिकतम सीमा 50 लाख रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक तय कर रखी है।

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