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हेल्‍थ इंश्‍योरेंस का उठाना चाहते हैं पूरा फायदा, तो हमेशा याद रखें यह चार बातें

हेल्‍थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के बाद भी कई बार क्लेम के समय हॉस्पिटल के पूरे बिल का भुगतान बीमा कंपनियां नहीं करती हैं।

Shubham Shankdhar Shubham Shankdhar
Updated on: May 26, 2016 11:24 IST
Pick the Best: हेल्‍थ इंश्‍योरेंस का उठाना चाहते हैं पूरा फायदा, तो हमेशा याद रखें यह चार बातें- India TV Paisa
Pick the Best: हेल्‍थ इंश्‍योरेंस का उठाना चाहते हैं पूरा फायदा, तो हमेशा याद रखें यह चार बातें

नई दिल्‍ली। हेल्‍थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के बाद भी कई बार क्लेम के समय हॉस्पिटल के पूरे बिल का भुगतान बीमा कंपनियां नहीं करती हैं। इलाज का कुल भुगतान बीमाकृत राशि (सम एश्योर्ड) से कम होने पर भी बीमा कंपनियां पूरा भुगतान करने से इंकार कर देती हैं और यह बोझ बीमाधारक की जेब पर आ पड़ता है। इसी तरह किसी छोटी सी चूक के कारण पॉलिसी धारक का क्लेम बीमा कंपनी रिजेक्ट कर देती है। ऐसी समस्याएं तमाम पॉलिसीधारक के समक्ष हर रोज आती हैं।

ऐसी समस्या आती क्यों है?

इस समस्या की मुख्य वजह बीमा करवाते समय बीमाधारक की ओर से नियम और शर्तों को ध्‍यानपूर्वक नहीं पढ़ना है। बीमाधारक अक्सर पॉलिसी के पूरे डॉक्यूमेंट और छोटे-बड़े क्लॉज को नहीं पढ़ते हैं, जिसकी वजह से बाद में बड़ी समस्या में फंस जाते हैं। पॉलिसी के क्लॉज में साफ लिखा होता है कि मरीज को रोजाना कितने रुपए  तक का कमरा इस पॉलिसी के अंतर्गत मिल सकता है। साथ ही डॉक्टर के डेली चेकअप या विजिट, दवाइयां, रोजाना का खर्चा आदि के मद में बीमाधारक को एक निश्चित राशि दी जाती है। इससे ज्यादा होने पर यह राशि बीमाधारक को अपनी जेब से भरनी पड़ती है। यही कारण है कि बीमा कंपनियां नियम और शर्तों का हवाला देकर बच जाती हैं और बीमाधारक को अंत में अपनी जेब से सभी खर्चों का भुगतान करना पड़ता है।

इस समस्या का समाधान कैसे संभव?

पॉलिसीधारक चाहे तो थोड़ी सी समझदारी दिखाकर इस समस्या का समाधान निकाल सकता है। Indiatvpaisa.com की टीम अपने इस आर्टिकल के माध्यम से आपको ऐसे चार तरीके सुझाएगी, जिनकों ध्यान रखकर आप अपनी हेल्थ पॉलिसी के अनुरूप अपने लिए अच्छे हॉस्पिटल का चुनाव कर बेहतरीन इलाज करा सकते हैं और क्लेम रिजेक्ट या पूरा भुगतान न होने जैसी समस्‍या से भी निजात पा सकते हैं।

 किन चार बातों का रखें ख्याल

1. इलाज के दौरान आने वाले खर्चे का लगाएं अनुमान

बाजार में ऐसी तमाम वेबसाइट और प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं जिन पर आप अपने एरिया में मौजूद हॉस्पिटल में इलाज करवाने पर आने वाले अनुमानित खर्च का हिसाब लगा सकते हैं। जैसे www.credihealth.com, ICICI लोमबार्ड का हेल्थ एडवाइजर आदि। ये बेवसाइट हॉस्पिटल को तमाम मानकों के आधार पर रेटिंग्स भी देती हैं। जैसे रूम रेंट, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर, हॉस्पिटल में इलाज की क्वालिटी, हॉस्पिटल की स्पेशलिटी आदि। ऐसे में आप अपनी बीमारी के लिए सबसे अच्छे इलाज के लिए उचित हॉस्पिटल का चुनाव कर सकते हैं और यह भी देख सकते हैं कि इलाज के दौरान आने वाले किस मद के खर्च को इंश्योरेंस पॉलिसी कवर करेगी और किसको नहीं।

2.नेटवर्क में उपलब्ध हॉस्पिटल का करें चुनाव

बीमा कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉसिली के साथ आपको नेटवर्क हॉस्पिटल की एक सूची भी देती है। अगर बहूत इमरजेंसी न हो तो कोशिश करें कि किसी नजदीक के नेटवर्क हॉस्पिटल में इलाज के लिए जाएं। अक्सर लोग रिश्तेदारों या डॉक्टर की सलाह से हॉस्पिटल का चुनाव करते हैं। नजदीक का हॉस्टिल सुविधा की दृष्टि से तो बेहतर होते ही हैं साथ ही ट्रांसपोर्टेशन और एंबूलेंस के खर्चे भी बच जाते हैं। ध्यान दें ज्यादातर हेल्थ पॉलिसी में एंबुलेंस का खर्चा शामिल नहीं या सीमित होता है। साथ ही नेटवर्क का हॉस्पिटल आपको कैशलेस इलाज की सुविधा देता है। नेटवर्क हॉस्पिटल में इलाज न करवाने पर मरीज को बाद में इलाज का खर्चा रिम्बर्स करवाना होता है, जो अपेक्षाकृत महंगा पड़ता है।

3.खर्चे के आधार पर हॉस्पिटल की तुलना जरूरी

एक जैसी बीमारी के इलाज के लिए अलग-अलग अस्पतालों में खर्चा भी अलग-अलग होता है। मसलन हार्ट की बाईपास सर्जरी का खर्चा दिल्ली के तमाम निजि अस्पतालों में 3 लाख से 7 लाख रुपए तक है। यह अंतर अस्पताल का नाम, सुविधाएं और लोकेशन के आधार पर होता है। इसके अलावा रोजाना खर्चे भी अलग-अलग अस्पतालों के एक से नहीं होते हैं। ऐसे में पॉलिसीधारक को अस्पताल में विजिट कर अपनी सर्जरी या बीमारी के इलाज के अनुमानित व्यय के बारे में पूछताछ कर लेनी चाहिए। साथ ही अस्पताल में दाखिल होने से पहले और बाद के खर्चों के बारे में भी पूछताछ कर लेनी चाहिए। इन सबके बारे में पर्याप्त जानकारी लेकर अपनी पॉलिसी के अनुरूप हॉस्पिटल का चुनाव करें।

4.हॉस्पिटल में दाखिल होने संबंधी नियम को रखें याद

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का लाभ उठाने के लिए आपको हॉस्पिटल में कम से कम 24 घंटे के लिए भर्ती रहना जरूरी होता है। 24 घंटे से कम भर्ती रहने पर बीमा कंपनियां आपके क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं। इसी तरह अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर आपको बीमा कंपनी को इनफॉर्म करना जरूरी होता है। मरीज को कुछ बीमारियों की स्थिति में भर्ती होने से पहले बीमा कपंनी को सूचित करना होता है। यह नियम पॉलिसीधारक को याद रखने बेहद जरूरी हैं।

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