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एसोचैम-ईएनवाई रिपोर्ट: ऑर्गेनिक फूड अपनाने के लिए हर महीने करना पड़ेगा 1500 रुपए अतिरिक्‍त खर्च

एसोचैम और ईएंडवाई की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अगर आप जैविक खेती में उगाए खाद्य पदार्थों को अपनाना शुरू करते हैं तो आपकी जेब पर हर महीने 1,200 से 1,500 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।

Sachin Chaturvedi Written by: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published on: July 02, 2018 19:18 IST
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नई दिल्ली। आजकल जहां देखो, हर कोई ऑर्गेनिक फूड की बात कर रहा है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि अगर आप ऑर्गेनिक फूड अपनाते हैं तो यह आपकी जेब पर कितना भारी पड़ सकता है। एसोचैम और ईएंडवाई की एक ताजा रिपोर्ट में इसी बात का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर आप जैविक खेती में उगाए खाद्य पदार्थों को अपनाना शुरू करते हैं तो आपकी जेब पर हर महीने 1,200 से 1,500 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।

अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि सरकार को जैविक खाद्य पदार्थों की लागत कम करने के लिये कदम उठाने चाहिये। फिलहाल जैविक तरीके से उगाये गये इन उत्पादों का दाम ऊंचा है जिससे हर व्यक्ति लगातार इन्हें खरीदने की सामर्थ नहीं रखता। एसोचैम और अंर्नस्ट एंड यंग एलएलपी द्वारा किये गये संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, महंगा होने के कारण जैविक खाद्य उत्पादों की पहुंच समृद्ध वर्ग तक ही सीमित है। लेकिन सामान्य वर्ग तक इन उत्पादों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिये सरकार को कदम उठाने होंगे।

अध्ययन में कहा गया है कि कम उपज तथा प्रसंस्करण , पैकेजिंग , लॉजिस्टिक्स और वितरण के अलावा किसानों के प्रशिक्षण में अधिक खर्च की वजह से जैविक खाद्य उत्पाद महंगे पड़ते हैं। इसके अलावा , अधिक प्रमाणन शुल्क और बढ़ती मांग तथा कम आपूर्ति-जैसे प्रमुख कारकों की वजह से जैविक उत्पाद पारंपरिक उत्पादों की तुलना में महंगे हैं। अध्ययन के मुताबिक जैविक उत्पादों से जुड़े हर पक्षकार के समक्ष कई तरह की चुनौतियां हैं। देश में जैविक खाद्य पदार्थों के मामले में नियामकीय ढांचे में कई तरह की खामियां हैं जिससे की इनके उत्पादकों को कामकाज विस्तार के लिये मुनाफे को ध्यान में रखते हुये हर स्तर पर मशक्कत करनी पड़ती है।

जैविक खेती में काम आने वाले बेहतर मानक के सामान की कमी, आपूर्ति श्रंखला से जुड़े मुद्दे, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की चुनौती, उचित ब्रांडिंग-पैकेजिंग का अभाव तथा कई अन्य तरह की चुनौतियां इस क्षेत्र के समक्ष हैं। अध्ययन में कहा गया है कि सरकार को चाहिये की उसे उर्वरकों को रासयनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल को हतोत्साहित करते हुये जैव- उर्वरकों और जैव-कीटनाशकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिये।

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