Thursday, March 28, 2024
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बच्चे क्यों लस्सी छोड़ चुनते हैं जंक फूड?, रिसर्च में हुआ खुलासा

एक अध्ययन में सामने आया है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में लोकप्रिय फास्टफूड चेन के लोगो (प्रतीक) को पहचान जाने वाले बच्चों में पारंपरिक एवं घर में बने खाने-पीने के सामान की जगह जंक फूड और मीठे पेय पदार्थों को वरीयता देने की संभावना रहती है ।

India TV Lifestyle Desk Edited by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 07, 2018 22:55 IST
Soft drinks vs lassi Why kids choose junk food decoded- India TV Hindi
Soft drinks vs lassi Why kids choose junk food decoded

हेल्थ डेस्क: भारत, पाकिस्तान और चीन समेत विभिन्न देशों में कराये गये एक अध्ययन में सामने आया है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में लोकप्रिय फास्टफूड चेन के लोगो (प्रतीक) को पहचान जाने वाले बच्चों में पारंपरिक एवं घर में बने खाने-पीने के सामान की जगह जंक फूड और मीठे पेय पदार्थों को वरीयता देने की संभावना रहती है ।

मैरीलैंड विश्वविद्यालय की शोध एसोसिएट प्रोफेसर डीना बोरजेकोवस्की ने कहा, ‘‘पांच साल का बच्चा क्यों कहता है कि उसे कोका कोला चाहिए? घर में मां के हाथों बनी कड़ाही की फ्राई चिकेन और सब्जियों की जगह केंटुकी फ्राइड चिकेन को तरजीह क्यों? ’’

अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ब्राजील, चीन, भारत, नाईजीरिया, पाकिस्तान और रुस में मार्केटिंग, मीडिया से रुबरु तथा अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं पेय पदार्थों के बीच के संबंध की छानबीन की।

जो बच्चे आसानी से मैकडोनाल्ड, केएफसी और कोका कोला जैसे अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं पेय पदार्थ ब्रांडों के लोगो को पहचान लेते हैं, उनमें इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के निम्न पोषण वाले प्रसंस्कृत खाद्यों के प्रति आग्रह एवं वरीयता की संभावना अधिक होती है।

वैसे तो बच्चों के विज्ञापनों से रुबरु होने, फास्ट फूड के प्रति उनकी वरीयता एवं मोटापे की उच्च दर के बीच के संबंधों पर अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में अच्छा खासा अध्ययन हुआ है लेकिन निम्न एवं मध्य आय वर्ग वाले देशों में मीडिया से रुबरु एवं बाल स्वास्थ्य के बीच संबंध के बारे में कम जानकारी उपलब्ध है।

बच्चों में मोटापा दुनियाभर में एक अहम जन स्वास्थ्य चिंता है, हालांकि साथ ही कई देशों में साथ ही खाद्य असुरक्षा की भी स्थिति है। लेकिन अनुमान है कि चीन में2030 तक एक चौथाई से अधिक बच्चे मोटे होंगे।

वैश्विक मार्केटिंग की पहुंच और खाद्य वरीयताओं पर उसके प्रभाव की समझ से इस समस्याकारी रुख को बदलने में लोगों की स्वास्थ्य संबंधी सोच बदल सकती है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने ब्राजील, चीन, भारत, नाईजीरिया, पाकिस्तान और रुस के 5-6 साल के 2,422 बच्चों के बारे में जानकारियां इकट्ठा कीं।

इस सर्वेक्षण में विभिन्न लोगो वाले कार्ड बच्चों के सामने रखे गये तथा वे कार्ड किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, उससे मिलान करने को कहा गया।

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