Friday, March 29, 2024
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करुणानिधि 14 साल की उम्र में हिंदी विरोध के साथ राजनीति में आए, जानिए एक पटकथा लेखक से CM तक का सफर

राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के प्रमुख एम करुणानिधि एक राजनेता के साथ ही एक लेखक, कवि और विचारक भी थे। यही वजह है कि उनके व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: August 08, 2018 7:42 IST
DMK के दिग्गज नेता एम...- India TV Hindi
DMK के दिग्गज नेता एम करुणानिधि का निधन का निधन हो गया है।

चेन्नई: राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के प्रमुख एम करुणानिधि एक राजनेता के साथ ही एक लेखक, कवि और विचारक भी थे। यही वजह है कि उनके व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तमिलनाडु के तिरुक्कुवलई में हुआ था। वे बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली थे।

14 साल की उम्र में हिंदी का किया विरोध

Karunanidhi 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर सियासी सफर पर निकल पड़े थे। दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध हुए आंदोलन में उनकी अहम भूमिका था। 1937 में स्कूलों में हिंदू अनिवार्य करने का उन्होंने ने भी विरोध किया था। बाद में उन्होंने तमिल भाषा में नाटक और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने का काम शुरू किया।

पटकथा लेखक के तौर पर करियर की शुरुआत

उनकी बेहतरीन भाषण शैली को देखकर पेरियार और अन्नादुराई ने उन्हें 'कुदियारासु' का संपादक बना दिया। हालांकि, पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद के बाद करुणानिधि अन्नादुराई के साथ जुड़ गए। करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के तौर पर करियर शुरू किया और कम समय में ही काफी लोकप्रिय हो गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और इसकी गहरी छाप उनके लेखन में झलकती थी। वे सुधारवादी कहानियों के लिए मशहूर थे

‘पराशक्ति’ फिल्म से मिली लोकप्रियता

उन्होंने पराशक्ति नामक फिल्म से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया। शुरुआत में इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन 1952 में इस रिलीज कर दिया गया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। रुढ़िवादी हिंदुओं ने इस फिल्म का विरोध किया था।

1957 में पहली बार विधायक बने

1957 में हुए विधानसभा चुनाव में वो पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इस दौरान उनके अलावा उनकी पार्टी डीएमके से 12 अन्य लोग भी विधायक बने थे। करुणानिधि 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने। करुणानिधि राजनीति के क्षेत्र में बढ़ते चले गए और 1967 के चुनावों में उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया।

1969 में करुणानिधि सीएम बने

1967 में डीएमके के सत्ता में आने के बाद अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। अन्नादुराई के कैबिनेट में करुणानिधि सार्वजनिक कार्य मंत्री बने। डीएमके के सत्ता में आने के बाद तमिलनाडु में कांग्रेस पिछड़ती चली गई। 1969 में अन्नादुरई की मौत हो गई और करूणानिधि को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया गया।

पांच बार तमिलनाडु के CM रहे

करुणानिधि पहली बार 1969 से 71 तक तमिलनाडु के सीएम रहे। 1971 के विधानसभा चुनाव में एकबार फिर पार्टी को जीत मिली और करुणानिधि दूसरी बार (1971-76) तमिलनाडु के सीएम बने। तीसरी बार वे 1989 से 91 तक सीएम रहे। फिर चौथी बार 1996 से 2001 तक सीएम रहे। पांचवीं बार वे 2006 से 2011 तक तमिलनाडु के सीएम रहे।

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