Wednesday, April 24, 2024
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पहले भी विवादों ने किया है न्यायपालिका का दामन दागदार

न्यायपालिका तब हिल गई थी जब भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी के खिलाफ 1993 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: January 12, 2018 23:17 IST
Court- India TV Hindi
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नयी दिल्ली: न्यायाधीशों से संबंधित विवादों ने पहले भी कई मौकों पर न्यायपालिका का दामन दागदार किया है। न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार से लेकर यौन उत्पीड़न तक के आरोप पहले लग चुके हैं और उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को तो सेवारत रहते हुण् अदालत की अवमानना के लिये कारावास की सजा तक सुनाई जा चुकी है। न्यायपालिका तब हिल गई थी जब भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी के खिलाफ 1993 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी। हालांकि, लोकसभा में न्यायमूर्ति रामास्वामी के खिलाफ लाया गया महाभियोग का प्रस्ताव इसके समर्थन में दो तिहाई बहुमत जुटाने में विफल रहा था। 

साल 2011 में राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को एक न्यायाधीश के तौर पर वित्तीय गड़बड़ी करने और तथ्यों की गलतबयानी करने का दोषी पाया था। इसके बाद उच्च सदन ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया था। हालांकि, लोकसभा में महाभियोग की कार्यवाही शुरू किये जाने से पहले ही न्यायमूर्ति सेन ने पद से इस्तीफा दे दिया था। 

साल 2016 में आंध्र एवं तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागार्जुन रेड्डी को लेकर एक विवाद पैदा हो गया जब एक दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिये अपने पद का दुरुपयोग करने को लेकर राज्यसभा के 61 सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिये एक याचिका दी थी। 

बाद में राज्यभा के 54 सदस्यों में से उन नौ ने अपना हस्ताक्षर वापस ले लिया था जिन्होंने न्यायमूर्ति रेड्डी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव दिया था। 

हाल में एक स्तब्धकारी घटना में कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश सी एस कर्णन को न्यायपालिका के खिलाफ मानहानिकारक टिप्पणी करने के लिये कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायाधीश पद पर रहते हुए जेल भेजे जाने वाले वह पहले न्यायाधीश बन गए थे। कर्णन को छह माह के कारावास की सजा सुनाई गई थी। उनकी सजा पिछले साल दिसंबर में समाप्त हुई। 

जब न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति की घोषणा की थी तो शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उच्चतम न्यायालय की तत्कालीन न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा ने अपनी अविवाहित बेटियों को ‘दायित्व’ बताया था। एक अन्य हतप्रभ करने वाले प्रकरण में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भक्तवत्सला ने अपने पति से तलाक मांग रही महिला याचिकाकर्ता से 2012 में कहा था कि शादी में सभी महिलाओं को कष्ट भुगतना पड़ता है। कई अन्य न्यायाधीश हैं जो अपने विवादों को लेकर चर्चा में रहे हैं। 

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू का अपने ब्लॉग में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की आलोचना करना न्यायालय रास नहीं आया था और उनसे व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर अपने आचरण को स्पष्ट करने को कहा गया था। साल 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे बी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का नोटिस भेजा था। उन्हें यह नोटिस ‘‘आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्प्णी करने’’ और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ एक मामले में फैसले को लेकर दिया गया था। महाभियोग का नोटिस राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को भेजने के कुछ ही घंटों बाद न्यायाधीश ने फैसले से अपनी टिप्पणी को वापस ले ली थी। 

भूमि पर कब्जा करने, भ्रष्टाचार और न्यायिक पद का दुरुपयोग करने को लेकर जांच के दायरे में जो एक अन्य न्यायाधीश आए थे उसमें सिक्किम उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश पी डी दिनाकरण का नाम आता है। उन्होंने अपने खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही 2011 में पद से इस्तीफा दे दिया था। न्यायपालिका को तब भी शर्मसार होना पड़ा था जब उच्चतम न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीश यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर विवादों में घिरे थे। इन न्यायाधीशों पर ये आरोप लॉ इंटर्न ने लगाए थे। 

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