Friday, March 29, 2024
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दिल्ली में भीख मांगना अब अपराध नहीं, आपराधिक दर्जा देने वाला कानून मौलिक अधिकार का उल्लंघन: हाईकोर्ट

अदालत ने कहा कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखना समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: August 08, 2018 23:43 IST
Delhi Highcourt- India TV Hindi
Delhi Highcourt

नयी दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि सड़कों पर भीख मांगने वाले लोग खुशी से यह काम नहीं करते हैं, बल्कि यह उनके लिए अपनी जरूरतें पूरी करने का अंतिम उपाय है। अदालत ने कहा कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखना समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही अदालत ने जीवन के अधिकार के तहत सभी नागरिकों के जीवन की न्यूनतम जरूरतें पूरी नहीं कर पाने के लिए सरकार को जिम्मेदार बताया। इस कृत्य पर दंडित करने के प्रावधान असंवैधानिक हैं और वे रद्द किये जाने लायक हैं। 

कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले बंबई भीख रोकथाम कानून के प्रावधान संवैधानिक परीक्षण में टिक नहीं सकते। पीठ ने 23 पन्नों के फैसले में कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि भीख मांगने का कथित अपराध करने वालों के खिलाफ कानून के तहत मुकदमा खारिज करने योग्य होगा। 

अदालत ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलू पर अनुभव आधारित विचार करने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर काबू के लिए वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है। हाईकोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को निरस्त किया। 

केंद्र सरकार ने कहा था कि वह भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं कर सकती क्योंकि कानून में पर्याप्त संतुलन है और इस कानून के तहत भीख मांगना अपराध की श्रेणी में है। अदालत ने 16 मई को पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है। 

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