Friday, April 26, 2024
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रोहिंग्या संकट: पति का शव गांव में छोड़ बांग्लादेश भाग आई म्यांमार की नसीमा

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हो रही इस हिंसा से कई लोग अपनों से बिछड़ चुके हैं तो कुछ सरहदों पर अभी भी उनके मिलने की आस लगाए बैठे हैं...

IANS Reported by: IANS
Published on: September 17, 2017 19:30 IST
Rohingya Muslims | AP Photo- India TV Hindi
Rohingya Muslims | AP Photo

नई दिल्ली: म्यांमार के राखिन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय के लोगों पर सेना के हमले की कार्रवाई ने हजारों रोहिंग्या परिवारों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया है। जाति विशेष के खिलाफ हो रही इस हिंसा से कई लोग अपनों से बिछड़ चुके हैं तो कुछ सरहदों पर अभी भी उनके मिलने की आस लगाए बैठे हैं। ऐसी ही एक रोहिंग्या मुस्लिम महिला है जिसे हिंसा के दौरान गांव में ही अपने पति के शव को छोड़कर भागना पड़ा। इस रोहिंग्या मुस्लिम महिला का नाम है नसीमा खातून (60) जो कि म्यांमार के राखिन राज्य की रहने वाली है, शहर में हिंसा फैलने के बाद खातून एक हफ्ते पहले ही परिवार समेत वहां से भाग निकली थी।

‘मेरे पति को गोली मार दी गई’

अलजजीरा के मुताबिक, नसीमा ने कहा, ‘हम संकट से पहले एक शांत जिंदगी जी रहे थे, पति मछुआरे थे और हमारी 3 बेटियां थी। रोहिंग्या लोगों पर सेना का दबाव तो था लेकिन हमें भोजन या फिर रहने की किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ रहा था। संकट तब शुरू हुआ जब सेना ने हमारे गांव में हमला कर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया, जिसके बाद हम सभी लोग अलग-अलग दिशाओं में भागने लगे। मैं जंगल में भागकर छिप गई लेकिन तभी किसी ने मुझसे आकर कहा कि मेरे पति को गोली मार दी गई है। तब मैं अपने आप को असहाय और डरी हुई महसूस करने लगी। सेना ने हमला कर गांव पर कब्जा कर लिया था, जिसके कारण मैं वापस गांव नहीं जा सकी और मुझे पति के शव को मजबूरन वहीं पर छोड़ कर बांग्लादेश भागना पड़ा।’

‘लुटी हुई दुकान से खाना लिया’
नसीमा ने कहा, ‘पति के शव को गांव में छोड़कर मैं अपनी बेटियों और कुछ पड़ोसियों के साथ बांग्लदेश भाग निकली। हम अपने साथ कुछ भी नहीं ला सके, खाने-पीने का सामान हमने रास्ते से ही जुटाया। हम लोग काफी दिनों से भूखे थे। एक दिन हम एक दुकान के पास से गुजर रहे थे जिसे हमारे लोगों ने लूट लिया तो हमें वहां कुछ खाने का सामान दिखा, जिसे हमने ले लिया। 10 दिनों के सफर के बाद हमने वास्तव में कुछ खाया था। मैं पूरे रास्ते रोती रही। मेरे पड़ोसियों ने मुझ पर दया कर बांग्लादेश जाने वाली नाव का किराया दिया। मैं म्यांमार छोड़ने को लेकर काफी दुखी थी, मैंने अपने पति, घर, जमीन और अपना सब कुछ उस हिंसा में खो दिया।’

‘अब शायद ही म्यांमार वापस जा पाऊं’
उसने कहा, ‘बांग्लादेश में शरण लेने के बाद हमने यहां एक अस्थायी शिविर की व्यवस्था की जिसमें बांग्लादेश के स्थानीय लोगों ने हमारी मदद की, भोजन देकर हमारी सहायता की। लेकिन हमारे पास पैसे कमाने का कोई मौका नहीं है, न ही हमारे लिए यहां कोई काम है। जब हमारे पास पैसे ही नहीं होंगे तो हम कैसे अपना भविष्य यहां बिता सकते हैं? हम सभी लोग म्यांमार वापस जाना चाहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब ऐसा हो पाएगा। म्यांमार हमारे लिए फिर कभी सुरक्षित नहीं होगा। मेरा मानना है कि हम दोबारा वहां वापस जाते हैं तो हमारा फिर से उत्पीड़न होगा या हम मारे जाएंगे। पूरी दुनिया हमारी स्थिति देख रही है। मेरा सबसे निवेदन है वह हमारे लिए सहानुभूति प्रदान करें।’

बांग्लादेश में भागकर आए 4 लाख रोहिंग्या शरणार्थी
ज्ञात हो कि म्यांमार सेना ने राखिन राज्य में रोहिंग्या आबादी पर हमला कर दिया था जिसके फलस्वरूप 4 लाख से ज्यादा रोहिंग्या घर छोड़कर बांग्लादेश भाग गए, इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। सेना के इस हमले पर संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने आंग सान सू और उनकी सरकार पर इस जातिगत हिंसा को खत्म करने के लिए दबाव भी डाला है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों के प्रमुख जिद राय अल-हुसैन ने 11 सितंबर को इस हमले पर कटाक्ष करते हुए कहा था, ‘हालात जातीय सफाये का एक जीता-जागता उदाहरण है।’

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