Friday, March 29, 2024
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जब 5 रुपये कमाने के लिए द ग्रेट खली ने की थी दिहाड़ी मजदूरी

नई दिल्ली: WWE की रिंग में बड़े-बड़े पहलवानों को पटखनी देने वाले द ग्रेट खली ने ऐसा भी दौर देखा है जब उनके गरीब माता-पिता ढाई रूपया फीस नहीं भर सके जिसकी वजह से उन्हें

Bhasha Bhasha
Published on: January 30, 2017 18:11 IST
The Great Khali- India TV Hindi
The Great Khali

नई दिल्ली: WWE की रिंग में बड़े-बड़े पहलवानों को पटखनी देने वाले द ग्रेट खली ने ऐसा भी दौर देखा है जब उनके गरीब माता-पिता ढाई रूपया फीस नहीं भर सके जिसकी वजह से उन्हें स्कूल से बाहर कर दिया गया। यही नहीं, उन्हें 8 बरस की उम्र में 5 रुपये रोजाना कमाने के लिए गांव में माली की नौकरी करनी पड़ी थी। खली ने बचपन में काफी खराब दौर झेला है। स्कूल छोड़ने से लेकर दिहाड़ी मजदूरी तक दलीप सिंह राणा ने सब कुछ किया। अपने कद के कारण वह लोगों के मजाक का पात्र बने।

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लेकिन उनकी किस्मत तब पलट गई जब उन्होंने कुश्ती में डेब्यू किया और वह कर दिखाया जो उनसे पहले किसी भारतीय ने नहीं किया था। वह WWE में डेब्यू करने वाले पहले भारतीय पहलवान बने। खली और विनीत के. बंसल द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई किताब ‘द मैन हू बिकेम खली’ में वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप जीतने वाले इस धुरंधर के जीवन के कई पहलुओं को छुआ गया है। स्कूल में उन्होंने काफी कठिन समय देखा। दोस्त उन पर हंसते थे और मां-बाप स्कूल की फीस भरने में असमर्थ थे। उन्होंने कहा, ‘1979 में गर्मियों के मौसम में मुझे स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि बारिश नहीं होने से फसल सूख गई थी और हमारे पास फीस भरने के पैसे नहीं थे। उस दिन मेरे क्लास टीचर ने पूरी क्लास के सामने मुझे अपमानित किया। सभी छात्रों ने मेरा मजाक बनाया।’ इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह कभी स्कूल नहीं जाएंगे।

​फोटोगैलरी: जब पांच रूपये कमाने के लिए खली ने की दिहाड़ी मज़दूरी

खली ने कहा, ‘स्कूल से मेरा नाता हमेशा के लिए टूट गया। मैं काम में जुट गया ताकि परिवार की मदद कर सकूं। एक दिन मैं अपने पिता के साथ था तो पता चला कि गांव में दिहाड़ी मजदूरी के लिए एक आदमी चाहिए और रोजाना 5 रुपये मिलेंगे। मेरे लिए उस समय 5 रुपये बहुत बड़ी रकम थी। मुझे ढाई रुपये नहीं होने से स्कूल छोड़ना पड़ा था और 5 रूपये तो उससे दोगुने थे।’ उन्होंने कहा कि विरोध के बावजूद उन्होंने गांव में पौधे लगाने का वह काम किया। उन्होंने कहा, ‘मुझे पहाड़ से 4 किलोमीटर नीचे गांव से नर्सरी से पौधे लाकर लगाने थे। सारे पौधे लगाने के बाद फिर नए लेने नीचे जाना पड़ता था। जब मुझे पहली मजदूरी मिली, वह पल मुझे आज भी याद है। वह अनुभव मैं बयां नहीं कर सकता। वह मेरी सबसे सुखद यादों में से है।’

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