Tuesday, April 16, 2024
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Happy B'day Veeru: क्रिकेट की दुनिया का राजकपूर यानी ग्रेट शो-मैन

टीम इंडिया के पूर्व तूफ़ानी ओपनर वीरेंद्र सहवाग के पास बल्लेबाज़ी को वो तकनीक कभी नहीं रही जो सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के पास थी लेकिन फिर भी उनका शुमार विश्व के ऐसे बल्लेबाज़ों में होता था.

Feeroz Shaani Written by: Feeroz Shaani
Updated on: October 20, 2017 17:12 IST
Virender Sehwag- India TV Hindi
Virender Sehwag

टीम इंडिया के पूर्व विस्फोटक ओपनर वीरेंदर सहवाग आज 39 साल के हो गए. इस मौके पर क्रिकेट जगत और मीडिया के नामी दिग्गज सहवाग को शुभकामनाएं दे रहे हैं और शुभकामनाओं के साथ वह यह भी बता रहे हैं कि वीरू आज भी उन्हें किसलिए याद हैं। इंडिया टीवी के चैयरमैन और एडिटर इनचीफ़ रजत शर्मा ने भी ट्वीट कर सहवाग को बधाई दी है. उन्होंने लिखा: ''जन्मदिन मुबारक हो. आप की अदालत में आपकी चुटीली चुटकियों ने समां बांध दिया.''

 वीरेंद्र सहवाग के पास बल्लेबाज़ी को वो तकनीक कभी नहीं रही जो सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के पास थी लेकिन फिर भी उनका शुमार विश्व के ऐसे बल्लेबाज़ों में होता था जिससे गेंदबाज़ ख़ौफ़ खाते थे. एक बार जब वीरु से उनकी तकनीकी की बाबत पूछा गया तो उनका कहना था: ''मैं गांव में क्रिकेट खेला हूं, बैटिंग करते समय मैं सामने घेरा बना लेता था और मेरा फ़ंडा एकदम साफ़ था, जो बॉल घेरे में गिरेगी उसे सीमा पार पहुंचा दुंगा और जो बाहर गिरेगी उसे छोड़ दुंगा.''

बल्लेबाज़ी में आक्रामकता मिजाज़ में मासूमियत

सहवाग ने जिस साफ़गोई से ये बयान दिया था उसी साफ़गोई और मासूमियत के साथ उन्होंने बल्लेबाज़ी भी की. उनकी मासूमियत की तो तब इंतहा हो गई जब उन्होंने

300 रन बनाने के बाद पूछा, ''क्या ऐसा करने वाला मैं पहला भारतीय हूं?'' वीरेंद्र सहवाग शुरु से ही हमेशा निर्भीक बल्लेबाज़ रहे थे. करियर के शुरुआती दिनों में वह इंडियन एयरलाइंस की के लिए खेलते थे और उस दौरान उन्होंने धुरंधर तेज़ गेंदबाज़ जवागल श्रीनाथ को भी नहीं बक्शा था. 

दरअसल वीरु को बहुत आसानी से क्रिकेट की दुनिया राजकपूर कहा जा सकता है यानी ग्रेट शो-मैन. वीरु जब भी मैदान पर उतरते थे तो दर्शक दिल थामकर आतिशबाज़ी का इंतज़ार करने लगते थे और अक़्सर ये इंतज़ार ज़ाया नहीं होता था. क्रिकेट फैंस के लिए वीरु मनोरंजन की गारंटी थे. यही उनकी बल्लेबाज़ी की ख़ासियत भी थी.

वीरु एक दो रन लेने के मामले में ''काहिल'' (आलसी) थे और यही वजह है कि वह चौक्कों और छक्कों में बात किया करते थे. आक्रामकता उनके खेल की ख़ूबी भी थी और कमज़ोरी भी. क्रिकेट के पंडिय भले ही वीरु की तकनीक को लेकर नाक-भौं सिकोड़ते रहे हों लेकिन दर्शक हमेशा उनकी बल्लेबाज़ी के दीवाने रहे.

जिस टीम की वजह से बाहर हुए उसी के ख़िलाफ़ बनाया रिकॉर्ड

सहवाग को 1999 विश्व कप के दौरान पहली बार भारतीय टीम में शामिल किया गया था लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक मैच में ख़राब प्रदर्शन करने पर उन्हें दो साल तक भुला दिया गया. दो साल बाद जब ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत दौरे पर आयी तब उनकी वापसी हुई. ये भी अजीब इत्तफ़ाक है कि जिस टीम के ख़िलाफ़ ख़राब प्रदर्शन की वजह से सहवाग को टीम से निकाला गया था उसी टीम के ख़िलाफ़ उन्होंने रिकॉर्ड भी बनाया. उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मुल्तान में खेले गए सिरीज़ के पहले टेस्ट में तिहरा शतक (309 रन) लगाने का कारनामा कर दिखाया था. उनका ''मुल्तान का सुल्तान'' नाम यहीं से पड़ा हालंकि उन्हें नजफगढ़ का नवाब भी कहा जाता रहा है. मज़े की बात ये है कि तिहरा शतक जड़ने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी को पता ही नहीं था कि उन्होंने कोई रिकॉर्ड बना दिया है. ड्रेसिंग रूम में जब उन्हें हकीकत बताई गई तो हैरान होकर बोले, ‘मैंने सोचा किसी और ने भी 300 किया होगा कभी.’ 

तेंदुलकर का सस्ता संस्करण कहा जाता था

सहवाग जब पहली बार भारत के लिए खेले थे तो उन्हें सचिन तेंदुलकर का सस्ता संस्करण कहा जाता था जैसे बॉलीवुड स्टार मिथुन चक्रवर्ती को ग़रीबों का अमिताभ बच्चन कहा जाता था. ये बात अलग है कि बाद में क्रिकेटप्रेमी मनोरंजन के लिए उन पर ज्यादा भरोसा करने लगे थे. बतौर सलामी बल्लेबाज़ हर तीन मैच में एक में शतक लगाने वाले सचिन तेंदुलकर ने उनके लिए सलामी बल्लेबाज़ की जगह छोड़ी थी क्योंकि अगर वह 40 ओवरों तक ध्यान से खेलें तो शतक बनाते हुए टीम के लिए भारी स्कोर खड़ा कर सकते थे. भारतीय टीम में यह शाही बल्लेबाज़ की गद्दी रही है और खुद गॉड ऑफ क्रिकेट ने उनके लिए यह गद्दी छोड़ी थी. सचिन से जगह की अदलाबदली के बाद दोनों के बीच तुलना के लिए लोग उतावले हो उठे थे.

अपने प्रदर्शन को लेकर साथियों से प्राप्त सम्मान के बदले वह वैसा ही सम्मान उन्हें देने की कोशिश करते थे. इसमें उनकी गेंदबाजों से निपटने वाली सूझबूझ भी काम आती थी. सचिन और उनमें क्या अंतर है? उनका जवाब होता था, ‘हमारा बैंक बैलेंस.’

चेन्नई में लगाया  सबसे तेज़ तिहरा शतक

‘मुल्तान का सुल्तान’ बनने के चार साल बाद ही सहवाग ने चेन्नई में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 319 रनों की पारी खेली. इस पारी में सहवाग ने महज 278 गेंदों में तिहरा शतक जड़ा जो टेस्ट क्रिकेट के इतिहास का सबसे तेज़ तिहरा शतक है. सहवाग टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में दो तिहरे शतक जड़ने वाले महज चार बल्लेबाज़ों में  एक हैं.  वह दुनिया के अकेले क्रिकेटर हैं, जिन्होंने टेस्ट में दो तिहरे शतक जड़ने के अलावा एक ही पारी में पांच विकेट भी चटकाए हैं. उन्होंने अपने 11 साल के टेस्ट करियर के दौरान छह दोहरे शतक भी जड़े हैं.

इंदौर में जड़ा वनडे में दोहरा शतक

सहवाग ने आठ दिसंबर, 2011 को इंदौर के होल्कर स्टेडियम में वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ वनडे क्रिकेट में भी दोहरा शतक लगाया था. वह तेंदुलकर के बाद इस मुकाम को हासिल करने वाले दूसरे बल्लेबाज़ थे. उस समय 149 गेंदों में उनका 219 रनों का स्कोर वनडे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे बड़ा स्कोर था. 2014 में रोहित शर्मा ने 173 गेंदों पर 264 रनों की पारी खेलकर यह रिकॉर्ड तोड़ा.

जब शोएब से कहा, बेटा बेटा होता है, बाप बाप

आजकल अपने तीखे ट्वीट के चर्चा में रहने वाले सहवाग अपने क्रिकेट जीवन में भी गेंदबाज़ों को चिढ़ाने के लिए मशहूर थे. सहवाग ने एक बार पाकिस्तान के तेज़ गेंदबाज शोएब अख़्तर से कहा था, ‘बेटा बेटा होता है और बाप बाप होता है.’ उस मैच में सहवाग अपना दोहरा शतक पूरा करने के करीब थे और शोएब लगातार बाउंसर करते हुए उन्हें हुक या पुल करने का इशारा कर रहे थे जिस पर सहवाग ने कहा कि तुम्हारे पिताजी दूसरे छोर पर बल्लेबाज़ी कर रहे हैं, उन्हें यह बात बोलो. दूसरे छोर पर सचिन तेंदुलकर बल्लेबाज़ी कर रहे थे और शोएब ने उन्हें बाउंसर फेंकी. तेंदुलकर ने हुक कर छक्का जड़ा.

जितनी तालियों के हक़दार थे, वो नहीं मिलीं

2002 अक्टूबर में जब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चैंपियंस ट्रॉफी सेमीफाइनल मैच में सहवाग ने 58 गेंदों पर 59 रन बनाए और बाद में पांच ओवर में 25 रन देकर तीन अहम विकेट भी चटाकाए. उनके इस मैच विजयी प्रदर्शन के बाद भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने सभी से कहा कि चलिए, सभी लोग वीरू के लिए तालियां बजाइए. तालियां बजीं, लेकिन उनमें वो तेजी नहीं थी. लेकिन सहवाग के करियर में कई बार ऐसा हुआ. ज़ाहिर है नई गेंद की बखिया उधेड़ देने वालन यह विध्वंसक बल्लेबाज़ जितनी तालियों का हक़दार था, वो उन्हें नहीं मिली.

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