हेल्थ डेस्क: थैलेसीमिया एक प्रकार का जेनेटिक डिसआर्डर होता है, जिसके चलते हीमोग्लोबिन गड़बड़ा जाता है और रक्तक्षीणता के लक्षण पैदा हो जाते हैं। हालांकि इसका समय रहते इलाज किया जा सकता है।ये भी पढ़े: (भूलकर भी ये लोग न पिएं गन्ने का रस, हो सकता है खतरनाक)
थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक रूप में मिलने वाला रक्त-रोग अर्थात जेनेटिक डिस्आर्डर होता है। इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके चलते रक्तक्षीणता के लक्षण पैदा हो जाते हैं।
बीटा चेंस के कम या बिल्कुल न बनने के कारण हीमोग्लोबिन गड़बड़ाता है। जिस कारण स्वस्थ हीमोग्लोबिन जिसमें 2 एल्फा और 2 बीटा चेंस होते हैं, में केवल एल्फा चेंस रह जाते हैं जिसके कारण लाल रक्त कणिकाओं की औसत आयु 120 दिन से घटकर लगभग 10 से 25 दिन ही रह जाती है।ये भी पढ़े: (मां की हुई ब्रेस्ट कैंसर से मौत, तो बेटे ने बनाया ब्रेस्ट कैंसर Detect करने वाली ‘ब्रा’)
थैलेसीमिया एक गंभीर बीमारी है और इससे केवल दो तरीके से रोका जा सकता है। शादी से पहले वर-वधु के रक्त की जांच हो, और यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है।
प्रेग्नेंसी के इस माह में कराएं चेकअप: ऐसी स्थिति में मां के 10 सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच होनी चाहिए। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। दूसरा उपाय यह कि यदि विवाह के बाद माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है।
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