Thursday, April 25, 2024
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खाना खाने के बाद हमारे पेट में लगती है ‘आग’, ऐसे हुआ खुलासा

हाल ही में सामने आए एक शोध में पता चला है कि वास्तव में हमारे पेट में एक तरह की अग्नि होती है। ताजा शोध के अनुसार, भोजन करने के साथ ही हमारे पेट की यह अग्नि भड़क उठती है, लेकिन...

IANS IANS
Published on: January 23, 2017 17:54 IST
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लंदन: हाल ही में सामने आए एक शोध में पता चला है कि वास्तव में हमारे पेट में एक तरह की अग्नि होती है। ताजा शोध के अनुसार, भोजन करने के साथ ही हमारे पेट की यह अग्नि भड़क उठती है, लेकिन यह हमारे लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी अग्नि है। यह अग्नि एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है जो भोजन के साथ उदर में गए जीवाणुओं से लड़ने का कार्य करती है। निष्कर्षो से पता चला है कि यह 'अग्नि' भारी शरीर वाले व्यक्तियों में नहीं होती है, जिससे मधुमेह होने का खतरा रहता है। दूसरी तरफ स्वस्थ व्यक्तियों में अल्पकालिक प्रतिक्रिया के रूप में भड़की यह 'अग्नि' प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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स्विट्जरलैंड में किया अध्ययन

स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए अध्ययन में पता चला है कि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर मैक्रोफेजेज की संख्या (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाएं या अपमार्जक कोशिकाएं) भोजन के दौरान आंत के चारों तरफ बढ़ जाती है। यह संदेशवाहक पदार्थ इंटरल्यूकिन-1बीटा (आईएल-1बीटा) का उत्पादन करती हैं।यह अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं में इंसुलिन के उत्पादन को उत्तेजित करता है और मैक्रोफेज को आईएल-1बीटा के उत्पादन का संकेत देता है।

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क्या है इसका काम?
इंसुलिन और आईएल-1बीटा साथ मिलकर रक्त में शर्करा के स्तर को नियमित करने का कार्य करते हैं, जबकि आईएल-1बीटा प्रतिरक्षा प्रणाली को ग्लूकोज की आपूर्ति को सुनिश्चित करता है और इस तरह से सक्रिय बना रहता है। ड्रोर ने कहा कि इसके विपरीत, जब पोषक पदार्थो की कमी होती है, तो कुछ शेष कैलरी को जरूरी जीवन की क्रियाओं के लिए संरक्षित कर लिया जाता है। इसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की कीमत पर किया जाता है।शोध के मुख्य लेखक इरेज ड्रोर ने कहा कि पर्याप्त पोषक पदार्थो से प्रतिरक्षा प्रणाली को बाहरी जीवाणु से लड़ने में मदद मिलती है।चयापचय की प्रक्रिया और प्रतिरक्षा प्रणाली जीवाणु और पोषकों पर निर्भर होती है। इन्हें भोजन के दौरान लिया जाता है। शोध पत्रिका 'नेचर इम्यूनोलॉजी' के ताजा अंक में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है।

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