Wednesday, April 17, 2024
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जानिए, गणेश जी को किसी भी शुभ कार्य करने से पहले क्यों पूजा जाता है

नई दिल्ली: हिन्दूधर्म में किसी भी शुभकार्य क शुरु करने के पहले गणेशजी की पूजा करना जरुरी माना गया है। चाहे वह किसी भी तरह का कार्य हो। इन्हें कई नामों सें पुकारा जाता है

India TV Lifestyle Desk India TV Lifestyle Desk
Updated on: September 14, 2015 8:41 IST
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जानिए, गणेश जी सर्वप्रथम पूज्नीय होने का कारण

नई दिल्ली: हिन्दूधर्म में किसी भी शुभकार्य क शुरु करने के पहले गणेशजी की पूजा करना जरुरी माना गया है। चाहे वह किसी भी तरह का कार्य हो। इन्हें कई नामों सें पुकारा जाता है जैसे कि विघ्नहर्ता, गजानन, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, सुमुख आदि नामों से जाना जाता है। इन नामों के स्मरण करनें मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते है । घर में सुख-शांति आजी है। गणेश जी को प्रसन्नकरना हपुत ही आसान है , लेकिन इसके लइए आपको सच्चें मन से गणेश जी की श्रृद्धा और उनके प्रिय मोदक उन्हें भोग लगाए। हमारें मन में एक बार यह बात जरुर आती होगी कि आखिर सबसें पहलें गणेश जी की ही पूजा क्यों की जाती है। किसी अन्य देनी-देवताओं की क्यों न की जाती है। अपनी खबर में बताएगें कि क्यों गणपति सर्नप्रथम पूजें जातें है।

गणपति को विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धी का स्वामी कहा जाता है। इनका स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है। गणेश का मतलब है गणों का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान व कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न-बाधा न पहुंचाएं, इसलिए सर्वप्रथम गणेश-पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है। इसके पीछें पौराणिक कथा भी है इसके बारें में विस्तार से पद्मपुराण में बताया गया है। इसके अनुसार सृष्टि के आरंभ में जब यह प्रश्न उठा कि प्रथमपूज्य किसे माना जाए, तो समस्त देवतागण ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने कहा कि जो कोई संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही प्रथम पूजा पहुंचे। इस पर सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पडे। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल, तो ऐसे में वे परिक्रमा कैसे कर पाते! इस समस्या को सुलझाया देवर्षि नारद ने। नारद ने उन्हें जो उपाय सुझाया, उनके अनुसार गणेशजी ने भूमि पर "राम" नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की और ब्रह्माजी के पास सबसे पहले पहुंच गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें प्रथमपूज्य बताया, क्योंकि "राम" नाम साक्षात् श्रीराम का स्वरूप है और श्रीराम में ही संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है।

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