डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 45वे राष्ट्रपति बन चुके हैं। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जहां ट्रंप के मुस्लिम विरोधी बयान सुर्ख़ियों में रहे वहीं भारत को लेकर उनका दोस्ताना अंदाज़ भी ख़बरों में रहा। लेकिन भारत को लेकर अब उनका रुख और नीतियां क्या रहेंगी यह आने वाले दिनों में पता लगेगा और इसी पर भारत और अमेरिका के रिश्ते तय होंगे। उम्मीद है कि एनएसजी सदस्यता और दूसरे मुद्दों पर अमेरिका का भारत के प्रति रुख वही रहेगा जो ओबामा के समय था।
वैश्विक व्यापार समझौता में बदलाव भारत के लिए चिंता
ट्रंप वैश्विक व्यापारिक समझौते के ख़िलाफ़ रहे हैं। उनका मानना रहा है कि ये समझौता नये सिरे से किया जाना चाहिये। अगर ट्रंप इस पर अमल करते हैं तो अन्य विकसित व विकासशील देशों के साथ-साथ भारत पर भी इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि वह अमेरिका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार देश है।
दोनों देशों के बीच मौजूदा 109 अरब डॉलर के कारोबार को 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में ट्रंप प्रशासन अगर व्यापारिक नीतियों पर संरक्षणवादी रवैया अपनाते हैं तो यह भारत के निर्यात व उद्योग जगत के लिए बहुत बड़ा धक्का होगा।
भारतीय आईटी पेशेवर और उनका भविष्य
वैसे तो यह संरक्षणवादी नीति से ही जुड़ा हुआ है लेकिन ट्रंप अगर एच-1 वीसा के मसले पर कड़ा रवैया अपनाते हैं तो यह भारत के हितों को बहुत दूर तक प्रभावित करने वाला साबित होगा। अमेरिका की तरफ से जितने विदेशी पेशेवरों को एच1 वीसा दिया जाता है उसमें से 90 फीसदी भारतीय होते हैं। भारत की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों की कमाई का यह बड़ा स्रोत है। साथ ही आईटी निर्यात से भी भारत को कमाई होती है।
NSG की स्थायी सदस्यता
भारत के प्रति अमेरिका की पुरानी नीतियों को आगे बढ़ा सकते हैं। एनएसजी की सदस्यता, संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का मुद्दा या फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर भारत के प्रस्ताव का समर्थन जैसे मुद्दों पर अमेरिकी सहयोग की संभावना।
चीन से ट्रंप की टक्कर और भारत
ट्रंप अगर अपनी पूर्व घोषणाओं के मुताबिक सीधे चीन से टक्कर लेने की नीति अख्तियार करते हैं तो यह भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित होगा और भारत की कूटनीति पर इसका सीधा असर पड़ेगा। चीन और भारत के रिश्ते पिछले एक वर्ष से लगातार ख़राब हो रहे हैं। चीन भारत की चिंताओं को लेकर वह बहुत ज्यादा संवेदनशील नहीं है। जानकारों का मानना है कि हाल ही में अमेरिका ने भारत को अपना सबसे अहम रणनीतिक साझेदार चीन को देखकर ही घोषित किया है।
पाक पर ट्रंप के बदलते स्वर
चुनाव से पहले पाकिस्तान को लेकर काफी तल्ख टिप्पणी कर चुके ट्रंप के स्वर चुनाव जीतने के बाद कुछ बदले हुए हैं। ऐसे में भारत को यह देखना होगा कि आतंक के पनाहगार बने पाकिस्तान को लेकर ट्रंप कड़ा रवैया अख्तियार करते हैं या ओबामा प्रशासन की तरह ही संतुलन बनाने की नीति अपनाते हैं।
अगर ट्रंप दबाव बना कर पाकिस्तान को आतंकियों की मदद करने की नीति को छोड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं तो यह भारत की आतंरिक व बाहरी सुरक्षा के लिए बहुत सकारात्मक होगा। भारत व पाक के रिश्ते फिलहाल बेहद खराब हैं और पाकिस्तान ने चीन व रूस के साथ त्रिपक्षीय समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं। यह समीकरण भारतीय कूटनीति के लिए आगे चल कर एक बड़ी चिंता का कारण बन सकता है। भारत यह भी देखना चाहेगा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक रखने की नीति को ले कर ट्रंप क्या फैसला करते हैं।