Thursday, March 28, 2024
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क्यों न चुनाव में धर्म पर वोट मांगने को अपराध माना जाए: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने गुरुवार को 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि क्यों न चुनाव में धर्म के आधार पर वोट मांगने

India TV News Desk India TV News Desk
Published on: October 21, 2016 8:26 IST
Supreme Court- India TV Hindi
Supreme Court

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने गुरुवार को 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि क्यों न चुनाव में धर्म के आधार पर वोट मांगने को चुनावी अपराध माना जाए? चुनावी प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष होती है और उसमें किसी धर्म को नहीं मिलाया जा सकता। चुनाव और धर्म दो अलग-अलग चीजें है उनको साथ-साथ नहीं जोड़ा जा सकता। 

चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर ने कहा कि 20 साल से संसद ने इस बारे में कोई कानून नहीं बनाया है, इतने वक्त से मामला सुप्रीम कोर्ट में है। तो क्या यह इंतजार हो रहा था कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करे जैसे यौन शौषण केस में हुआ है? 

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता सुंदरलाल पटवा के वकील की इस दलील पर की कि सुप्रीम कोर्ट को 1995 के जजमेंट को बने रहने देना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि पटवा का जैन समुदाय से हैं और कोई उनके लिए कहे कि वे जैन होने के बावजूद राम मंदिर बनाने में मदद करेंगे तो यह प्रत्याशी नहीं बल्कि धर्म के आधार पर वोट मांगना होगा। 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पहले कहा था कि हिंदुत्व धर्म नहीं जीवन शैली है। लेकिन इस मामले में अब दोबारा सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने मंगलवार से सुनवाई शुरू की है। हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली का हिस्सा है या फिर धर्म है, इस मामले की सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने समीक्षा शुरू की है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने कई बड़े सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि क्या कोई एक समुदाय का व्यक्ति अपने समुदाय के लोगों से अपने धर्म के आधार पर वोट मांग सकता है? क्या यह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आता है? क्या एक समुदाय का व्यक्ति दूसरे समुदाय के प्रत्याशी के लिए अपने समुदाय के लोगों से वोट मांग सकता है? क्या किसी धर्म गुरू के किसी दूसरे के लिए धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण होगा और प्रत्याशी का चुनाव रद्द किया जाए? 

भारत में चुनाव के दौरान धर्म, जाति समुदाय इत्यादि के आधार पर वोट मांगने या फिर धर्म गुरुओं द्वारा चुनाव में किसी को समर्थन देकर धर्म के नाम पर वोट डालने संबंधी तौर तरीके कितने सही और कितने गलत हैं, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पहली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को फिलहाल पार्टी बनाने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार को मामले में पार्टी बनाने संबंधी मांग को खारिज करते हुए कहा कि यह एक चुनाव याचिका का मामला है, जो कि सीधे चुनाव आयोग से जुड़ा है। इसमें केंद्र सरकार को पार्टी नहीं बनाया जा सकता। 

1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'हिंदुत्व' के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार को कोई फायदा नहीं होता है।' उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को 'वे ऑफ लाइफ' यानी जीवन जीने का एक तरीका और विचार बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व भारतीयों की जीवन शैली का हिस्सा है और इसे हिंदू धर्म और आस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना करप्ट प्रैक्टिस नहीं है और रिप्रिजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट की धारा-123 के तहत यह भ्रष्टाचार नहीं है। 

याचिकाकर्ता के वकील ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 व इसके अनुभाग तीन पर कहा कि वर्ण, धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के आधार पर अगर कोई व्यक्ति वोट मांगता है तो इसे चुनाव के गलत तरीकों की संज्ञा दी जाती है। ऐसा मामला पाए जाने पर दोषी व्यक्ति का पूरा चुनाव रद्द कर दिया जाता है। 

गौरतलब है कि 1992 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे, उस समय वहां के नेता मनोहर जोशी ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र को वे पहला हिंदू राज्य बनाएंगे। इस पर विवाद हुआ था और 1995 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है। इसे हिंदू धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था। 

वर्ष 2002 में मामले को विचार के लिए सात जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा गया था. इसी तरह का एक मामला मध्य प्रदेश में भी हुआ था। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड और कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट को पलटने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि पिछले ढाई साल से देश में इन आदेशों की आड़ में इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे अल्पसंख्यक, स्वतंत्र विचारक और अन्य लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को ऐसे भाषण देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

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