Thursday, April 25, 2024
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UP ELECTION 2017: महागठबंधन की चुनौती की काट के लिए भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग

नयी दिल्ली: सामाजिक एवं जातिगत समीकरणों को साधकर उत्तरप्रदेश में सत्ता के 14 वर्षो के बनवास को खत्म करने में जुटी भाजपा बिहार की तर्ज पर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस आदि का महागठबंधन की

Bhasha Bhasha
Published on: January 18, 2017 18:27 IST
Amit Shah- India TV Hindi
Amit Shah

नयी दिल्ली: सामाजिक एवं जातिगत समीकरणों को साधकर उत्तरप्रदेश में सत्ता के 14 वर्षो के बनवास को खत्म करने में जुटी भाजपा बिहार की तर्ज पर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस आदि का महागठबंधन की गंभीर चुनौती की काट के लिए सोशल इंजीनियरिंग के आज़माये फार्मूले को आगे बढ़ा रही है। 

मायावती की तरह ही भाजपा भी इस बार उत्तरप्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भाजपा की पहली सूची में इसकी झलक साफ नजर आती है । भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनावों के मद्देनजर सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए 64 सवर्ण (जिसमें 33 क्षत्रिय और 11 ब्राह्मण), 44 ओबीसी और 26 दलित उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। 

चुनाव अभियान से जुड़े भाजपा के एक नेता ने बताया कि पार्टी अपने वोटबैंक के आधार सवर्ण के अलावा इस बार ओबीसी और दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रही है। टिकट भी उन्हें ही दिया जा रहा है जिनके जीतने की प्रबल संभावना हो ।

समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के शांत होने के बाद अखिलेश यादव के हाथों में पार्टी की बागडोर आने और कांग्रेस के साथ महागठबंधन को आगे बढ़ाने की पहल भाजपा के लिए चुनौती पेश कर रही है। इस बारे में पूछे जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने भाषा से कहा कि सपा और कांग्रेस का यह कदम भाजपा को सत्ता से आने से रोकने के लिए हताशा में उठाया गया है। मायावती के कुशासन के बाद लोगों ने समाजवादी पार्टी को जनादेश दिया था लेकिन अखिलेश सरकार ने लोगों को धोखा दिया है और बहुमत की सपा सरकार जुगाड़ के आधार पर कांग्रेस और रालोद के साथ गठबंधन करने में लग गयी है। 

उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को पराजय की अनुभूति हो गई है और उनको लगने लगा है कि लोगों ने उनके पांच वर्षो के कुशासन को खारिज करके भाजपा के पक्ष में मन बना लिया है। और ऐसी हताशा में वे कदम उठा रहे हैं। प्रदेश के लोग वंशवाद की राजनीति और जाति के गुणा भाग को खारिज करने का मन बना चुके हैं । 

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट 19 फीसदी है जो काफी निर्णायक होता है। पिछले चुनाव में सपा के प्रचंड बहुमत में मुस्लिम वोट का हाथ था तो 2007 में मायावती को मिले बहुमत में दलित के साथ ब्राह्मण वोट का मेल महत्वपूर्ण था। 

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पिछले दिनों सपा में छिड़े घमासान से मुस्लिम मतदाता थोड़ा संशय में था। सपा के लिए गठबंधन इसलिए भी जरूरी हो गया था क्योंकि उसे आशंका थी कि कमजोर सपा के साथ मुस्लिम मतदाता नहीं खड़ा होना चाहता। सपा और कांग्रेस के महागठबंधन के बाद भाजपा को उम्मीद है कि बसपा और महागठबंधन के बीच मुस्लिम मतों के विभाजन का उसे लाभ मिलेगा। 

भाजपा नेता बृजेश पाठक ने कहा कि समाजवादी पार्टी में हुए धमासान ने यह साबित कर दिया है कि अखिलेश यादव प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था का राज कायम रख पाने में कामयाब नहीं हुए हैं। राज्य में हुए कई दंगे इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं। ऐसे में जनता उसी को जनादेश देगी जो उत्तरप्रदेश को अपराधमुक्त करके विकास के रास्ते पर ले जायेगा। 

भाजपा को हराने में कामयाब रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ समय पहले कहा था कि 2017 में उत्तरप्रदेश में भाजपा के उभार को रोकने का एक मात्र तरीका बिहार की शैली वाला महागठबंधन हो सकता है जो विचारधाराओं का संगम हो। 

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