सुरभि आर शर्मा
21 साल की “करुणा” को एक सिरफिरे युवक ने दिन दहाड़े सिर्फ इसलिए वीभत्स तरीके से मार दिया क्योंकि वह करुणा से एक तरफा प्यार करता था। देश की राजधानी दिल्ली में भीड़ मूकदर्शक बनीं रही एक इंसान भी ऐसा नहीं था जो करुणा की मदद करने को आगे आया। आखिर करुणा का कसूर क्या था ? आखिर हम कैसे लोगों के बीच रह रहे हैं जहां महिलाएं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से नहीं जी पाती ?
मैं समझ नहीं पा रहीं हूं कि आखिर एक लड़की जब इंकार करती है तो एक तरफा मोहब्बत करने वाले व्यक्ति पर यह कैसा जुनून सवार हो जाता है जिसमें वह किसी लड़की की जिंदगी तबाह करने पर आमादा हो जाता है ? आखिर यह कैसा प्यार है जिसमें व्यक्ति रिजेक्शन सहन नहीं कर पाता ? कोई शक में मारता है ? कोई ईर्ष्या में मारता है ? कोई बेटी को जन्म देने पर मारता है ? कोई मनचाहा प्यार करने पर मारता है ? कोई क़त्ल किए बिना तानो से मारता है ? कोई गंदी जुबां से...तो कोई गंदी नज़रों से मारता है ? आखिर ये सब क्या है ? महिला सशक्तीकरण या महिला चीरहरण ?
और ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की वारदात को कम पढ़ें लिखे लोग अंजाम देते हो, जरा याद करिए आखिर किस तरह से 24 जून को तमिलनाडु के नुगाबक्कम रेलवे स्टेशन पर इंफोसिस की सिस्टम इंजीनियर एम स्वाती को उसके फेसबुक फ्रेंड ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी !
आखिर हम किस तरह के पुरुष प्रधान समाज में जी रहे हैं, जो जरा सी भी आजादी महिलाओं को देने में संकोच करता है ? आजकल के लड़के आखिर क्यों इस मानकसिकता के साथ जीते हैं कि लड़की अगर मेरी नहीं हो सकती तो किसी की नहीं हो सकती ? आखिर यह कैसे संस्कार है और यह पुरुष प्रधान समाज अपनी इस मानसिकता से कैसे बाहर आएगा ? बाहर तो आना ही होगा क्योंकि आखिर कब तक कभी करुणा तो कभी एम स्वाती जैसे युवा सपनों की मौत कुछ सिरफिरे लोगों के चलते होती रहेगी?
आखिर कौन गुनाहगार है जिसके चलते रोज़ाना कुछ बेगुनाहगार मासूम ज़िन्दगी खत्म हो जाती है, जिसकी खबरें सुबह के अखबार के पन्नों में होती है, बस नाम बदल जाता है कभी करुणा तो कभी एम स्वाती, कभी कोई और…? ऐसे भी गुनाहगार है जो बात महिलाओ की सशक्तीकरण की करते है लेकिन अपनी बुरी नियत और महिलाओं पर फब्तियो से चीरहरण करते है ..
डॉटर डे...मदर्स डे...वुमेंस डे... क्या सिर्फ एक ही दिन मिलेगा महिलाओ को इज़्ज़त पाने का ?? पंडित नेहरू द्वारा कहा गया "लोगो को जगाने के लिए महिलाओ का जागृत होना ज़रूरी है.. एक बार जब वह अपना कदम उठा लेती है..परिवार आगे बढ़ता है..राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है।
लेकिन महतवपूर्ण सवाल: क्या महिलाएं सचमुच मज़बूत बनी है ? क्या उसका संघर्ष ख़त्म हो चुका है ? आखिर कब तक दहेज, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा ...बलात्कार ..मानव तस्करी का शिकार होंगी लड़किया ????
(ब्लॉग लेखिका सुरभि आर शर्मा देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)