नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति लापरवाही या फिर अनजाने में किसी धर्म का अपमान करता है, तो उसपर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा क्योंकि इससे कानून का दुरुपयोग होता है। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए के हो रहे दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए यह बात कही। (अब किराये का घर हो जाएगा अपना, बन जाएंगे मकान मालिक!)
धार्मिक भावनाओं को आहात करने पर इस कानून के तहत तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के लिए दंड प्रावधान को लागू करने और अनजाने में बिना दुर्भावनापूर्ण और गलत इरादे की गई टिप्पणी में अंतर बताया। आपको बता दें कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर करीब तीन साल की सजा का प्रावधान है।
जस्टिस दीपक मिश्रा, ए एम खानविलकर और एमएम शांतनागोद की बेंच ने कहा, लापरवाही, अनजाने में या फिर गैर इरादतन ढंग से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना आईपीसी की धारा में शामिल नहीं है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने टीम इंडिया के वनडे कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को बड़ी राहत दी। कोर्ट ने धोनी के खिलाफ चल रहे धार्मिक भावनाएं भड़काने के मामले को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केस में धोनी ने जानबूझकर या दुर्भावना के साथ यह काम नहीं किया था। गौरतलब है कि 2013 में एक बिजनस मैगजीन में धोनी की विष्णु के रूप में तस्वीर छपी थी, जिसके बाद उन पर केस दर्ज हुआ था।
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