Friday, March 29, 2024
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BLOG: नोटबंदी पर सरकार सेर तो जनता सवा सेर, जुगाड़ पर भारी जुगाड़

नोटबंदी के 15 दिन बाद आखिरकार सरकार कई लीकेज बंद करने में कामयाब रही। कुछ जरूरी जगहों पर छूट भी दी। ये छूट, जलकर सूखने की तरफ बढ़ रहे जख़्मों की चरचराहट को कुछ कम करेगी। ये ताज़े कदम ज़ाहिर है बैंक में भीड़ को घटाएंगे और नोटबंदी को उसके असली मकसद की

IndiaTV Hindi Desk IndiaTV Hindi Desk
Updated on: November 25, 2016 22:35 IST
SOURABH SHUKLA- India TV Hindi
SOURABH SHUKLA

 (BLOG: सौरभ शुक्ला)

नोटबंदी के 15 दिन बाद आखिरकार सरकार कई लीकेज बंद करने में कामयाब रही। कुछ जरूरी जगहों पर छूट भी दी। ये छूट, जलकर सूखने की तरफ बढ़ रहे जख़्मों की चरचराहट को कुछ कम करेगी। ये ताज़े कदम ज़ाहिर है बैंक में भीड़ को घटाएंगे और नोटबंदी को उसके असली मकसद की तरफ बढ़ाएंगे, लेकिन इतनी देर क्यों हुई?

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सरकार ने काले धन पर एक्शन के लिए एक जुगाड़ टाइप स्कीम चलाई तो देश के तमाम लोगों ने उससे भी बड़े जुगाड़ लगाकर उस स्कीम की लंका लगा दी। हर तरफ बेसब्री और अफरातफरी का आलम!! इसी माहौल से पैदा हुए हैं कई वाजिब सवाल!

आखिर इतना समय क्यों लगा?

पहला बड़ा सवाल ये कि आखिर इतना समय क्यों लगा? नोटबंदी के बाद 15 दिन तक नॉर्थ ब्लॉक की चारदीवारी के भीतर कोट-पैंट में बैठे बाबूओं को आप समझा नहीं पाए थे कि करना क्या है? या वास्तव में उनके भीतर इतनी क्षमता ही नहीं है कि मिशन मोड में काम कैसे करते हैं?

आखिर नीयत के हिसाब से नीति क्यों नहीं बनी?
8 नवंबर को रात 8 बजे ठाठ के साथ नोटबंदी का ऐलान हुआ तो उसी रफ्तार से और उसी चालाकी से फैसले क्यों नहीं हुए? ये सवाल हर शख्स के दिमाग़ में उसी दिन से घूम रहा है कि आखिर नीयत के हिसाब से नीति क्यों नहीं बनी?

एक बड़ा सवाल ये भी कि बैंकों के सारे फैसले आखिर नॉर्थ ब्लॉक के कमरा नंबर 41 से ही क्यों सुनाए जाते हैं? बैंक के कामकाज, नियम कानून का दायित्व रिजर्व बैंक गवर्नर का होता है लेकिन वो तो पिच्चर में दिखे ही नहीं। ऐसे में ये बताइए कि उर्जित पटेल क्या सिर्फ नोटों पर ऑटोग्राफ देने के लिए गवर्नर बने हैं? या इतने काबिल नहीं हैं कि बड़े फैसलों का ऐलान उनसे कराया जाए? शक्तिबाबू आते जरूर थे प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेकिन तमाम सवालों को सुनकर ऐसे भागते थे जैसे घर से जवाब देने की शक्ति लाना भूल गए हों।

नोट बदलने का फैसला और लिमिट
सरकार! नोट बदलने का फैसला और लिमिट वो बड़ी विंडो रही जिसने काली कमाई के नए रास्ते गुनहगारों को दिखाए। आपने कहा 4000 बदल लो, लोगों ने 500 रुपए देकर भीड़ खड़ी कर दी नोट बदलने के लिए..आपने १००% की  पेनाल्टी का जो ऐलान किया काला धन जमा करने पर तो लोगों ने 12.5% पर ही काला नोट उजाला जैसा चमकीला कर लिया। एक्‍सचेंज की लिमिट समेटकर 2000 की तो ये धंधा 25% पर होने लगा और तुम्हे पहले दिन से ये दिख रहा था फिर भी इसे रोकने में 15 दिन लगे! आश्चर्य!! घोर आश्चर्य!!!

सिर्फ यहीं नहीं आपके हर वार का पलटवार बाकायदा किया गया और हर मोर्चे पर ये बताया जा रहा है कि जुगाड़ के मामले में आप सेर हो तो जनता सवा सेर है। आप ने रेल में मंजूरी दी, लोगों ने टिकट बुक कराकर कैंसिल करके काला धन सफेद करने का जुगाड़ लगा दिया। आपने पेट्रोल पंप पर इजाज़त दी लोग 1000 रुपए लेकर 100 का पेट्रोल डलाने पहुंच गए। आपने केंद्रीय भंडार में पुराने नोट चलाए, लोग ऐसे अनाज खरीद रहे हैं मानो कॉलोनी में भंडारा हो।

आप डाल-डाल वो पात-पात
​सरकार, आप ये कैसे भूल गए कि कोआपरेटिव बैंक भी पैसा जमा करते हैं...जब सब जमा हो गया तो आपने उसे लॉक किया और अब जांच करोगे। आपने ATM से पैसे निकालने का नियम बनाया।  लोग मोहल्ले के ATM कार्ड लेकर पैसे निकालने पहुंच गए।आप डाल डाल चले वो पात पात चले...आपके हर वार से बेअसर! आप ने कहा कि नोट जादू की छड़ी से छाप लेते हो लेकिन बैंकों तक पहुंचाने के वक़्त क्या छड़ी को नींद आने लगती है? आखिर कहां हैं नोट? दिखाओ?? शहर-शहर, गांव-गांव जनता त्राहि त्राहि कर रही है. अपने पैसों के लिए मार खा रही है...लोग मर रहे हैं।

आपने लोगों की शादियों में बैंड बाजे बजने की जगह उनका ही बैंड बजा दिया...और तो और और आपने तो मुर्दों तक को नहीं छोड़ा। नोट के चलते किसी की डेड बॉडी अस्पताल में अटकी है तो कफन न मिलने से अर्थी घंटों इंतजार के बाद सजी।

हर फैसले पर मंथन की जरूरत
सरकार को मंथन करना ही चाहिए, हर फैसले पर और उसके असर पर कि आखिर जो तीर चलाया है,उसका जो निशाना था वह वहीं लगा है या फिर किसी बेकसूर आम आदमी को भी चोट पहुंचा गया है। सोचना ही चाहिए क्‍योंकि उसकी मिडिल फिंगर के जादू से ही वोट निकलता है और सरकार बनती है।

मंथन से हो सकता है जो आपको जवाब पता चले। वो जवाब कुछ यूं होगा सरकार...कि ये देश जुगाड़ का देश है़। इस देश के जुगाड़ का दुनिया में डंका बजता है। ये सही है देश इसी तरह से जुगाड़ से ठीक होगा। यहां आप एक तरकीब निकालोगे देश बदलने के लिए तो 10 जुगाड़ निकलेंगे उसे वापस ढकेलने के लिए।  आप उसे पूरब की तरफ मोड़ने का जतन करोगे तो थोड़ी देर बाद उसे पश्चिम की तरफ सरकता पाओगे। भारत में चाय और पान की दुकान की शिक्षा, व्यवहारिक जीवन की कसौटी में हॉवर्ड और IIM को भी मात देती हैं, यह बात तो देश के पीएम भी जानते हैं। यहां चाय और पान के ठीहों पर नॉर्थ और साउथ ब्लॉक से ज्यादा कानून जबानी लिखे और फाड़कर फेंक दिए जाते हैं। 

फैसले को लागू कराने का बंदोबस्त बेहतर होना चाहिए
कुल मिलाकर अपना तो यह मानना है कि जब ऐतिहासिक और बड़ा फैसला सरकार कर सकती है तो उसे उतनी ही स्‍पीड से अमलीजामा पहनाने का बंदोबस्‍त भी सरकार को करना चाहिए। ताकि इस देश के आम आदमी को कम से कम परेशानी हो और वह सरकार के फैसले से अपने आप को जुड़ा हुआ पाए और उसको इस बात का अहसास हो कि उसकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए नोटबंदी का नया दौर आया है। जनता का शासन जनता के लिए केवल संविधान में लिखा हुआ ही नहीं बल्कि जमीन पर लागू होते हुए भी दिखना चाहिए। और इस बात को पीएम मोदी से बेहतर कौन समझ सकता है, भला जो व्‍यक्ति 3 बार गुजरात जैसे प्रदेश का मुख्‍यमंत्री रह चुका हो और जो देश की बागडोर संभाल रहा हो। काश बड़े फैसले के साथ अफसर भी कुछ तेज कदमों से चले होते,कुछ सिस्‍टम ने साथ दिया होता तो बात कुछ और होती। ऐसी स्थिति में नोटबंदी का असर कालेधन पर दिखता और जुगाड़ के सहारे कालाधन सफेद ना हो पाता।

(ब्लॉग लेखक सौरभ शुक्ला देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत है और बिजनेस पत्रकारिता पर विशेष समझ रखते हैं)

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