नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि वह मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, तलाक हलाला और बहुविवाह की परंपरा कानूनी पहलू से जुडे मुद्दों पर ही विचार करेगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह इस सवाल पर विचार नहीं करेगा कि क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक की अदालतों को निगरानी करनी चाहिए क्योंकि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
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प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की पीठ ने कहा, आप (विभिन्न पक्षों के वकील) एकसाथ बैठिये और उन बिन्दुओं को अंतिम रूप दीजिये जिन पर हमें विचार करना होगा। हम बिन्दुओं के बारे में फैसला करने के लिये इसे परसों सूचीबद्ध कर रहे हैं। पीठ ने संबंधित पक्षों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसी मामले विशेष के तथ्यात्मक पहलुओं पर विचार नहीं करेगा और इसकी बजाये कानूनी मुद्दे पर फैसला करेगा। पीठ ने कहा, हमारी तथ्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है। हमारी दिलचस्पी सिर्फ कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक को अदालतों की निगरानी या अदालत की निगरानी वाली संस्थागत मध्यस्थता की आवश्यकता से संबंधित सवाल विधायिका के दायरे में आते हैं। केन्द्र ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, तलाक हलाला और बहविवाह प्रथा का विरोध करते हुये लिंग समानता और पंथनिरपेक्षता के आधार पर इस पर नये सिरे से गौर करने की हिमायत की है।
विधि एवं न्याय मंत्रालय ने लिंग समानता, पंथनिरपेक्षता, अंतरराष्ट्रीय नियम, धार्मिक परंपराओं और विभिन्न इस्लामिक देशों में प्रचलित वैवाहिक कानूनों का भी हवाला दिया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन परंपराओं पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता बताने वाले नरेन्द्र मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण को बेतुका बताया है।
जमीयत उलेमा -ए-हिन्द ने न्यायालय से कहा है कि तीन तलाक, तलाक हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दों के बारे में मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।