नई दिल्ली: विदेशी एवं घरेलू स्रोतों से वित्तपोषित सभी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) लोकपाल के दायरे में आएंगे जो भ्रष्टाचार में उनकी संलिप्तता के संबंध में उनके खिलाफ जांच शुरू कर सकेगा। इसके अलावा, एनजीओ और उनके शीर्ष कार्यकारियों को प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी निकाय के समक्ष आय एवं संपत्तियों का ब्यौरा दायर करना होगा। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के हाल में अधिसूचित नियमों के अनुसार सरकारी अनुदान के तौर पर दो करोड़ रुपए से अधिक राशि एवं विदेशों दान के रूप में 10 लाख रुपए से अधिक राशि प्राप्त करने वाले एनजीओ लोकपाल के दायरे में आएंगे।
नए नियमानुसार इस प्रकार के एनजीओ के अधिकारियों को लोक सेवकों की तरह माना जाएगा और वित्तीय अनियमितताओं के मामले में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत आरोप लगाए जाएंगे। ये नियम एनजीओ, सीमित दायित्व भागीदारी फर्मों (एलएलपी)- जो विधि या रियल एस्टेट फर्म हो सकती है- या ऐसे किसी भी समूह पर लागू होंगे जिसे आंशिक या पूर्ण रूप से केंद्र सरकार की ओर से मदद मिलती है लेकिन बड़े कॉरपोरेट लोकपाल के दायरे से बाहर होंगे।
भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं ने लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से निजी क्षेत्र की कंपनियों को छूट देकर इस क्षेत्र में रिश्वत को कथित रूप से नजरअंदाज करने के सरकार के कदम पर चिंता जताई है। कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव एनजीओ के एक्सेस टू इनफर्मेशन प्रोग्राम के कार्यक्रम समन्वय वेंकटेश नायक ने कहा, भ्रष्टाचार से निपटने की खातिर सोसाइटी, ट्रस्टों, संघों एवं एलएलपी को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाने के लिए सरकार के वित्तपोषण की सीमा तय करने संबंधी डीओपीटी की हालिया अधिसूचना एवं लोकपाल अधिनियम में कंपनी अधिनियम 2013 के तहत पंजीकृत निजी कंपनियों को शामिल नहीं किया गया है जो चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि भारत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते को अंगीकार किया है और इसके प्रावधानों के तहत सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह निजी क्षेत्र की संलिप्तता वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कदम उठाए। नए नियमानुसार विदेशी स्रोतों से वित्तपोषित एनजीओ को विदेशी अनुदानों का गलत इस्तेमाल करते पाए जाते पर गृह मंत्रालय को उनके कार्यकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए सक्षम प्राधिकरण बनाया गया है।