Saturday, April 20, 2024
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शाहजहां के दारा को उत्ताधिकारी चुनने का कारण देश में भाइचारे को बढ़ावा देना था: अकबर

विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर ने आज कहा कि मुगल शासक शाहजहां ने औरंगजेब के बजाय अपना उत्तराधिकारी दारा शिकोह को इसलिए बनाना पसंद किया था क्योंकि वह भाईचारा आदि आध्यात्मिक गुणों के जरिये वह भारत पर शासन करने के हामीदार थे और इसके पीछे कोई भावनात्मक का

Bhasha Bhasha
Updated on: April 27, 2017 16:08 IST
mj akbar- India TV Hindi
mj akbar

नई दिल्ली: विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर ने आज कहा कि मुगल शासक शाहजहां ने औरंगजेब के बजाय अपना उत्तराधिकारी दारा शिकोह को इसलिए बनाना पसंद किया था क्योंकि वह भाईचारा आदि आध्यात्मिक गुणों के जरिये वह भारत पर शासन करने के हामीदार थे और इसके पीछे कोई भावनात्मक कारण नहीं था।

अकबर ने यहां भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद की ओर से दारा शिकोह : भारत की आध्यात्मिक विरासत की पुनर्स्थापना विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, उनकी दिलचस्पी इस सवाल में है कि क्यों मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह को अपने दरबार में रखा जबकि अन्य पुत्रों को सूबेदार बनाकर बाहर भेज दिया।

उन्होंने कहा दारा को शाहजहां द्वारा अपना सहायक बनाना भावनाओं पर आधारित नहीं था, क्योंकि जब आप इतिहास देखेंगे तो आपको एक बात का अहसास होगा कि भावनाएं अपेक्षाकृत आधुनिक प्रवृति हैं। अकबर ने कहा कि मुगलों में सबसे बड़े बेटे को उत्तराधिकारी बनाने की परंपरा कभी नहीं रही। उन्होंने कहा कि शाहजहां जानते थे कि भारत पर आध्यात्मिकता के जरिए शासन किया जा सकता है। यह आध्यात्मिकता भाइचारे के दर्शन से आती है।

अकबर ने कहा, दारा को चुनने का कारण था कि शाहजहां को पता था कि दारा भारत का बच्चा है। वह इस बात को समझते थे कि अगर आप लोगों के दिल को नहीं जीत सकते हैं तो उन पर शासन नहीं कर सकते हैं।

गौरतलब है कि दारा शिकोह शाहजहां के चार पुत्रों में सबसे बड़ा था और औरंगजेब ने उसका कत्ल करा दिया था। उसने इस्लाम और हिन्दू धर्म का तुलनात्मक मूल्यांकन करने की कोशिश की। उन्होंने संस्कृत सीख कर वेदों और उपनिषदों का गहराई से अध्ययन किया।

दारा ने अपनी अहम रचना सीर-ए-अकबर (बड़ा रहस्य) की प्रस्तावना में लिखा है कि कुरान की कुछ आयतें उपनिषद में भी मौजूद है। उसने उपनिषद का पारसी में अनुवाद भी किया था। इस कार्यक्रम में अमेरिका, ईरान, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, कजाखस्तान और भारत सहित सात देशों के विद्वान हिस्सा ले रहे हैं।

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