Saturday, April 27, 2024
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भारत का एक मात्र श्मशान जहां लाशों से भी वसूलते हैं पैसे......

हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक सिर्फ दिन में ही दाह संस्कार किया जाता है लेकिन गंगा के तट पर मणिकर्णिका घाट भारत का एक मात्र ऐसा घाट है जहाँ दिन रात यानि 24 घंटे शवों का दाह संस्कार किया जाता है।

India TV News Desk India TV News Desk
Published on: May 06, 2017 8:35 IST
Manikarnika Ghat- India TV Hindi
Manikarnika Ghat

नई दिल्ली: बनारस की तीन चीज़ें पूरे संसार में प्रसिद्ध है। काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारसी साड़ी और मणिकर्णिका घाट। हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक सिर्फ दिन में ही दाह संस्कार किया जाता है लेकिन गंगा के तट पर मणिकर्णिका घाट भारत का एक मात्र ऐसा घाट है जहाँ दिन रात यानि 24 घंटे शवों का दाह संस्कार किया जाता है। मणिकर्णिका श्मशान घाट के बारे में मान्यता है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है। यहाँ पर एक दिन में करीब 300 शवों का अंतिम संस्कार होता है। (यहां जलती चिताओं के पास आखिर क्यों पूरी रात नाचती हैं सेक्स वर्कर?)

आप शायद यकीन ना करें पर इस श्मशान घाट पर आने वाले हर मुर्दे को चिता पर लिटाने से पहले बाकायदा टैक्स वसूला जाता है। श्मशान घाट पर लाशों से पैसे वसूलने के पीछे की ये कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है।

मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की परम्परा तकरीबन तीन हजार साल पुरानी है। मान्यता है कि श्मशान के रख रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। चूंकि डोम जाति के पास तब रोजगार का कोई और साधन नहीं था लिहाजा दाह संस्कार के मौके पर उन्हें दान देने की परम्परा थी। मगर डोम तब दाह संस्कार की यूं मुंह मांगी कीमत नहीं मांगते थे और ना ही पैसा कमाने के गलत तरीके अपनाते थे।

दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने तब एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिये उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी।

चूंकि बिना दान दिये तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी लिहाजा राजा हरीशचंद्र को मजबूरन अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा बतौर दक्षिणा कल्लू डोम को देना पड़ा। बस तभी से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परम्परा मजबूत हो गई। वही परम्परा जिसका बिगड़ा हुआ रूप मणिकर्णिका घाट पर आज भी जारी है।

चूंकि ये पेशा अब पूरी तरह एक धंधे की शक्ल अख्तियार कर चुका है लिहाजा श्मशान के चप्पे चप्पे पर डोम परिवार ने बाकायदा जासूस फैला रखे हैं। उनकी नजर श्मशान में आने वाली हर शव यात्रा पर रहती है ताकि किस पार्टी से कितना पैसा वसूला जा सकता है इसका ठीक ठीक अंदाजा लगाया जा सके।

वैसे डोम परिवार की बात पर यकीन किया जाए तो गुजरे जमाने में उन पर धन-दौलत लुटाने वाले रईसों की कमी नहीं थी। उनका दावा है कि उस दौर में अंतिम संस्कार के एवज में उन्हें राजे रजवाड़े जमीन जायदाद यहां तक की सोना-चांदी तक दिया करते थे। जबकी आज के जमाने में मिलनेवाली तयशुदा रकम के लिये भी उन्हें श्मशान आने वालों से उलझना पड़ता है।

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