Friday, March 29, 2024
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फेयरवेल स्पीच में बोले प्रणब, 'सहिष्णुता से शक्ति मिलती है, यह हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा'

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्र के नाम संदेश में नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देने के साथ ही कहा कि वे भारत के लोगों को प्रति सदैव ऋणी रहेंगे।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: July 24, 2017 20:23 IST
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नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्र के नाम संदेश में नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देने के साथ ही कहा कि वे भारत के लोगों को प्रति सदैव ऋणी रहेंगे। राष्ट्रपति के तौर पर अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा कि जो कुछ भी योगदान इस देश के लिए उन्होंने दिया है उससे बहुत ज्यादा उन्हें मिला है। उन्होंने समाज में व्यापत हिंसा पर भी चिंता जताई और भारत के समग्र विकास की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा 'भारत की आत्मा , बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है और सहृदयता और समानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नींव रही है। लेकिन प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है।' 

अहिंसा की शक्ति को फिर से जगाना  होगा

उन्होंने परोक्ष रूप से देश और दुनिया में बढ़ती हिंसा के संदर्भ में कहा, हमें अपने जन सवांद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा। राष्ट्रपति ने कहा, एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गो के विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को फिर से जगाना  होगा। 

हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है

हमारे समाज के बहुलवाद के निर्माण के पीछे सदियों से विचारों को आत्मसात करने की प्रवृति का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता ही भारत को विशेष बनाती है। उन्होंने कहा, 'हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह सदियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है।जन संवाद के विभिन्न पहलू हैं। हम तर्क-वितर्क कर सकते हैं, हम सहमत हो सकते हैं या हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते। अन्यथा हमारी विचार प्रक््िरुया का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।'

भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ 

प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में कहा, जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृति बढ़ती जाती है। परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है। पिछले 50 सालों के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है, भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है। 

गरीब राष्ट्रगाथा का हिस्सा बने

उन्होंने कहा, 'गांधीजी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां आबादी का हर वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। वह चाहते थे कि हमारे लोग एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यो की दिशा में आगे बढ़ें। वित्तीय समावेशन समतामूलक समाज का प्रमुख आधार है। हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी नीतियों के फायदे कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। उन्होंने कहा, विकास को वास्तविक बनाने के लिए, देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र गाथा का एक हिस्सा है। 

शिक्षा संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाना होगा

राष्ट्रपति ने कहा, जैसा कि मैंने राष्ट्रपति का पद ग्रहण करते समय कहा था कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है। शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति से समाज को पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है। इसके लिए हमें अपने उच्च संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाना होगा। हमारी शिक्षा प्रणाली द्वारा रूकावटों को सामान्य घटना के रूप में स्वीकार करना चाहिए और हमारे विद्यार्थयिों को रूकावटों से निपटने और आगे बढ़ने के लिए तैयार करना चाहिए।

पर्यावरण की सुरक्षा अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी 

राष्ट्रपति ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा हमारे अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। प्रकृति हमारे प्रति पूरी तरह उदार रही है परंतु लालच जब आवश्यकता की सीमा को पार कर जाता है तो प्रकृाि अपना प्रकोप दिखाती है। अक्सर हम देखते हैं कि भारत के कुछ भाग विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित हैं जबकि अन्य भाग गहरे सूखे की चपेट में हैं। जलवायु परिवर्तन से कृषि क्षेत्र पर भीषण असर पड़ा है। 

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