Friday, April 19, 2024
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राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बता दें कि मौलिक अधिकार यानी फंडामेंटल राइट्स संविधान से हर नागरिक को मिला बुनियादी अधिकार है। इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी शख्स हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं अदालत

India TV News Desk Written by: India TV News Desk
Updated on: August 24, 2017 10:46 IST
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नई दिल्ली: क्या राइट टू प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जा सकता है? क्या ये संविधान का हिस्सा है? सरकार, आम लोगों की ज़िंदगी में कितना दखल दे सकती है? सुप्रीम कोर्ट की बेंच आज सुबह 10 बजे जनता के इन्हीं सवालों पर फैसला सुनायेगी। आज सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले का सीधा असर सरकारी योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़ने के मामले पर पड़ेगा। ये भी पढ़ें: दुनिया दहलाने वाली भविष्यवाणी, पाकिस्तान-चीन मिलकर करेंगे भारत पर हमला

बता दें कि मौलिक अधिकार यानी फंडामेंटल राइट्स संविधान से हर नागरिक को मिला बुनियादी अधिकार है। इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी शख्स हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं अदालत में लंबित हैं। इन याचिकाओं में सबसे अहम दलील दी गई है कि आधार कार्ड से प्राइवेसी यानी निजता का हनन होता है जबकि सरकार की दलील है कि राइट टू प्राइवेसी का अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं है।

इस फैसले का सोशल नेटवर्क व्हाट्सएप की नई निजता नीति पर भी असर पड़ेगा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर, 2016 को दिए अपने आदेश में व्हाट्सएप को नई निजता नीति लागू करने की इजाजत दी थी, हालांकि अदालत ने व्हाट्सएप को 25 सितंबर, 2016 तक इकट्ठा किए गए अपने यूजर्स का डेटा एक अन्य सोशल नेटवर्किं ग कंपनी फेसबुक या किसी अन्य कंपनी को देने पर पाबंदी लगा दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जिस पर भी गुरुवार को फैसला आना है।

सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. खेहर, न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर वाली संविधान पीठ ने दो सप्ताह की सुनवाई के बाद दो अगस्त को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले पर सुनवाई 19 जुलाई को शुरू हुई थी और दो अगस्त को संपन्न हुई।

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