नयी दिल्ली: लोगों में "देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना" पैदा करने के लिए सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विभिन्न विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। कुछ ने इसे "न्यायपालिका का अति उत्साह" बताया तो कुछ का कहना है कि इसे बजाने में बजाने में कोई नुकसान नही है।
पूर्व एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का कहना है कि अदालत लोगों को खड़ा करने का आदेश नहीं दे सकती जबकि सीनियर वकील केटीएस तुली का मानना है कि न्यायपालिका को ऐसे क्षेत्र में दख़ल नहीं देना चाहिये जो उसका नही है। लेकिन वकील और बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी का कहना है कि राष्ट्रगान का सम्मान करने में कोई हर्ज़ नही है। उन्होंने कहा, "स्कूलों, जन समारोह और अन्य समारोह में राष्ट्रगान बजाया जाता है अगर ये किसी अन्य जगह में भी बजाया जाय तो क्या नुकसान है? इससे कोई नुकसान नहीं होता और राष्ट्रगान के समय खड़ा होना स्वाभाविक है।"
तुलसी और वरिष्ठ वकील केके नेणुगोपाल का मानना है कि इस आदेश से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है क्योंकि सिनेमाघरों के मालिकों के लिए लोगों को खड़ा करना मुश्किल हो जाएगा, ख़ासकर बच्चों, बुज़ुर्ग और विकलांग लोगों के मामले में।
सोराबजी ने कहा, "वो (अदालत) सरकार को क़ानून में संशोधन करने का आदेश दे सकती है लेकिन वो ख़ुद खड़े होने, ये करने या वो करने का आदेश नहीं दे सकतीं।"
लेखी ने कहा कि राष्ट्रगान के मामले में कानून स्पष्ट है। राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा से संबंधित कानून में इसका स्पष्ट उल्लेख है। "कोर्ट ने महज़ कानून पढ़ा है। देश में रहने वाले लोगों को कानून का पालन करना चाहिये।
इस बीच तुलसी ने न्यायपालिका को याद दिलाया कि उसका मूल दायित्व "न्यायिक निर्णय" करना है। "कोर्ट को ये ज़रुर सोचना चाहिये कि उसका अधिकार क्षेत्र क्या है। उसका मूल दायित्व "न्यायिक निर्णय" करना है। अदालती फ़ैसलों में सदियों से देरी होती आई है और हम हैं कि ऐसे क्षेत्र में दख़ल दे रहे हैं जो हमारा नही है। मैं इस फ़ैसले से बिल्कुस सहमत नही हूं। पहली बात तो ये है कि ये अदलात का काम नहीं है कि तय करे कि लोगों को कैसे बर्ताव करना चाहिये। राष्ट्रगान का अपमान न हो ये सुनिश्चित करना एक बड़ी समस्या होगी। राष्ट्रगान के समय अगर कोई खड़ा नहीं होता है या विकलांग खड़े नहीं हो पाते हैं तो कुछ लोग झगड़ा कर सकते हैं।''
लेखी ने ये भी कहा कि राष्ट्रगान का सम्मान करना धर्मनिरपेक्षता है। देश के संविधान में कानून की बुनियाद है। "जब हम संविधान के तहत धार्मिक, बोलने और अन्य तरह की आज़ादी की मांग कर सकते हैं तो हम संविधान में मौजूद बुनियादी ज़िम्मेदारियां क्यों नही निभा सकते?''
ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर को एक जनयाचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि समय आ गया है कि लोगों को ये एहसास हो कि वे एक देश में रहते हैं और राष्ट्रीयगान का सम्मान करना उनकी ज़िम्मेदारी है। राष्ट्रगान संवैधानिक देशभक्ति का प्रतीक है।"