नई दिल्ली: यूनिस गनई ने कथित तौर पर पुलिस उत्पीड़न से बचने के लिए महीने भर पहले विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए घर छोड़ दिया। लेकिन 24 वर्षीय यूनिस की मौत से उसके पिता को राहत मिलती दिख रही है। सप्ताह के आखिर में हुई गोली बारी में कश्मीरी आतंकवादी की मौत का समाचार सुनने के बाद मकबूल गनई कहते हैं, "उसकी मौत से उसके परिवार को शांति से रहने में मदद मिलेगी। यूनिस और उसके साथ दोनों हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी थे। वे दोनों मध्य कश्मीर के एक गांव में मुठभेड़ के दौरान गोलीबारी में मारे गए। यहां से उनका घर कुछ किमी दूर बड़गाव में था।" (एक महीने में ही खुल गई योगी सरकार की पोल: अखिलेश यादव)
यह राहत जो पिता को महसूस होती है, वह सामान्य नहीं है। उसका मानना है कि बीते कई सालों से चले आ रहे सभी 'उत्पीड़न, यातना और अपमान' अब खत्म हो जाएगा। मकबूल ने श्रीनगर से आईएएनएस से फोन पर बातचीत में कहा, "मैं एक बार पुलिस के पास अपने बेटे की पूछताछ के लिए गया था। उन्होंने मुझे 13 से ज्यादा दिनों तक बंद रखा।"
उन्होंने कहा, "जब मैंने उसके मारे जाने की बात सुनी तो मैंने अपनी पत्नी से कहा कि अब सब उत्पीड़न खत्म हो गया। मेरे बेटे ने जो भी किया वह इसलिए किया, ताकि हम शांति से रह सकें।" जैसे ही उसकी मौत की खबर फैली, रविवार को उसे दफनाए जाने से पहले सैकड़ों लोग आतंकवादी के घर के बाहर जमा हुए।
मकबूल ने कहा कि निसंदेह अपने तीन बेटों में सबसे बड़े बेटे को खोने के असहनीय दर्द से गुजर रहे हैं, जिसने उसे गांव में एक स्टोर चलाने में मदद की। पिता ने कहा कि 2013 से पुलिस ने उस पर लगातार अत्याचार और परेशान किया, जिसने उसके बेटे को एक आतंकवादी बनने को मजबूर किया गया। यूनिस के पिता ने कहा कि यूनिस को छापेमारी और उत्पीड़न के बाद उस साल गिरफ्तार किया और उसके बाद कई छापे मारे गए। पुलिस ने उसके बेटे पर एक झूठा हथियार रखने के मामले दर्ज किया। नतीजतन, उसकी लगातार गिरफ्तारी की गई और पुलिस और सेना ने उसके घर पर छापेमारी की।
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