Thursday, April 25, 2024
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Blog: मायावती ने यूं ही नहीं दिया इस्तीफा, इसके गहरे सियासी मायने हैं

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के इस्‍तीफे को स्‍वाभाविक या किसी क्षणिक आक्रोश का प्रतिफल नहीं कहा जा सकता। मायावती जैसे सधे नेता के कदम के गहरे सियासी मायने और सियासी हित होते हैं। उनका यह कदम भी अपने में कई सियासी संदर्भ छिपाए हुए है।

Shivaji Rai Written by: Shivaji Rai
Updated on: July 19, 2017 14:59 IST
Mayawati new- India TV Hindi
Image Source : PTI Mayawati new

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के इस्‍तीफे को स्‍वाभाविक या किसी क्षणिक आक्रोश का प्रतिफल नहीं कहा जा सकता। मायावती जैसे सधे नेता के कदम के गहरे सियासी मायने और सियासी हित होते हैं। उनका यह कदम भी अपने में कई सियासी संदर्भ छिपाए हुए है। दरअसल उत्‍तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार और भारतीय जनता पार्टी के प्रति दलितों के बढ़ते लगाव से मायावती का आत्‍मविश्‍वास काफी कमजोर हुआ है। हथेली की रेत की तरह फिसलते दलित वोटबैंक को रोकना मायावती के सामने बड़ी चुनौती हो गई है। ऐसे में मायावती ने इस्‍तीफा के जरिए वोटबैंक को साधने की तरूप चाल चली है। इस्‍तीफे के जरिए मायावती ने दलित वर्ग में यह संदेश देने की कोशिश है कि वह दलित हित में किसी भी तरह की कुर्बानी के लिए पीछे नहीं हटने वाली हैं। इस्‍तीफा देने में भी उन्‍हें कोई हिचक नहीं है। 

दूसरे सियासी नजरिए से देखें तो मायावती का राज्‍यसभा में कार्यकाल 9 महीने ही रह गया है। आने वाले 2 अप्रैल को उनका कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में दलित हित के नाम पर राज्‍यसभा से इस्‍तीफा देकर कुर्बानी को कैश करना उनके लिए हर लिहाज से लाभ का सौदा है। मायावती इस बात से भी अच्‍छी तरह वाकिफ हैं कि रामनाथ कोविंद के राष्‍ट्रपति बनने के बाद दलितों के बीच पकड़ बनाए रखना भी बड़ी चुनौती होगी। साथ ही भारतीय जनता पार्टी को दलित विरोधी बताकर वोट बटारेना भी अब आसान नहीं होगा। लिहाजा मायावती के समाने करो या मरो का सवाल खड़ा होना स्‍वाभाविक है।

पिछले चुनावों पर नजर दौड़ाएं तो यह साफ है कि दलितों का बड़ा हिस्‍सा भले ही मायावती के साथ रहा, लेकिन पिछड़े और अति पिछड़े वोटर बीएसपी से छिटककर बीजेपी के साथ चले गए हैं। इसके साथ ही पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती का मुस्लिम-दलित गठजोड़ भी कामयाब नहीं हो सका। मायावती और अंसारी बंधुओं की लाख कोशिश के बावजूद मुसलमानों का समाजवादी पार्टी से मोह कम नहीं हुआ। ऐसे में बीएसपी का दलितों में पकड़ बनाए रखना मायावती की पहली और आखिरी जरूरत है।

सियासी गलियारे में इस बात की भी अटकलें तेज हैं कि मायावती इस्‍तीफे के बाद दलित-पिछड़ा बाहुल्‍य फूलपुर संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव में भी उतर सकती हैं। उत्‍तर प्रदेश की दो लोकसभा सीट गोरखपुर और फूलपुर, सीएम योगी आदित्‍यनाथ और डिप्‍टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के सांसद पद से इस्‍तीफे के बाद खाली होने वाली हैं। मायावती को इस्‍तीफे का सियासी लाभ आने वाले दिनों में कितना होगा इस बारे में अभी कहना जल्‍दबाजी होगी, लेकिन इतना तय है कि हाशिए पर पड़ी मायावती ने इस्‍तीफे के मास्‍टर स्‍ट्रोक से दलित उत्‍पीड़न के नाम पर नया माहौल जरूर बना लिया है।

(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के अग्रणी हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)

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