Friday, April 19, 2024
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बिहार : कब 'पटरी' पर लौटेगी बाढ़ पीड़ितों की जिंदगी?

बिहार के कटिहार जिले में महानंदा नदी के रौद्र रूप और बीच में गंगा नदी के तांडव ने सैकड़ों लोगों के आशियाने छीन लिए हैं।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: August 20, 2017 0:05 IST
BIhar flood- India TV Hindi
Image Source : PTI BIhar flood

कटिहार: बिहार के कटिहार जिले में महानंदा नदी के रौद्र रूप और बीच में गंगा नदी के तांडव ने सैकड़ों लोगों के आशियाने छीन लिए हैं। अपने स्थायी आशियाने के छिन जाने और शिविर में जगह न मिलने के कारण इन बाढ़ पीड़ितों का नया ठिकाना या तो रेलवे स्टेशन या फिर रेल पटरियों के आसपास बन गया है। गंगा के रौद्र रूप और बौराई महांनदा ने इनका तो सबकुछ छीन लिया, अब ये दाने-दाने को मोहताज हैं। 

कटिहार के डंडखोरा, गोरफर, सनौली, झौआ, मीनापुर, सालमारी, बारसोई और सुधानी सभी स्टेशनों में बाढ़ पीड़ितों का हाल एक जैसा है। तीन दिन बीत जाने के बाद भी अब तक राहत के नाम पर कुछ भी नहीं मिलने का दर्द इन्हें बेचैन कर रखा है। 

मीनापुर स्टेशन पर अपने पूरे परिवार के साथ शरण लिए मोहम्मद नईम कहते हैं, "पानी इतना रफ्तार से आया कि कुछ भी संभाल नहीं सके। सबकुछ या तो बर्बाद हो गया या बह गया। किसी तरह दो दिन का अनाज निकाल सका था, अब वह भी खत्म हो चला है। खुद तो किसी तरह भूखे रह लेते, लेकिन इन दो बच्चों को कहां से अनाज दें?" 

स्टेशनों को आशियाना बना चुके बाढ़ पीड़ितों के दर्द की दास्तां अंतहीन है। हर भूखे पेट राहत के लिए तरसती निगाहें मानो एक दहशत भरे मंजर को याद कर सहम जा रही है। कटिहार के बाढ़ पीड़ितों के बीच स्थानीय सांसद तारिक अनवर और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय पहुंच चुके हैं, लेकिन आज इन बाढ़ पीड़ितों की आंखें किसी ऐसे रहनुमा को तलाश रही हैं, जो इनकी बेपटरी हो चुकी इस जिंदगी को इस रेल पटरी से ले जाकर फिर से पटरी पर ले आए। 

कटिहार के आजमनगर प्रखंड की करीब सभी पंचायतें बाढ़ के पानी में डूब चुके हैं। यहां के कुछ लोगों ने सालमारी रेलवे स्टेशन पर आसरा लिया है, लेकिन यहां के लोगों को भी अब तक कुछ नहीं मिला है।उनासो पचागाछी के लोग कहते हैं कि दो दिन से अब तक यहां राहत सामग्री के नाम पर कुछ नहीं मिला है। यहां 500 से ज्यादा लोग अनाज के दाने को मोहताज हैं। महानंदा नदी का कदवा प्रखंड के शिवगंज-कचौड़ा गांव के बीच बांध टूट जाने से हजारों हेक्टेयर से भी अधिक जमीन पर धान के पौधे पानी में डूबे हैं। किसान गमगीन हैं। कई गांवों के तमाम लोग केले के तने की नाव बनाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचे। 

कदवा प्रखंड के लोगों का कहना है कि राहत शिविर लोगों को सुविधा देने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। कचौरा गांव के किसान रामसुंदर कहते हैं कि किसान के लिए उसकी फसल ही पूंजी है। जब फसल ही बर्बाद हो गया तो किसान के सामने तो एक साल की चिंता है। इस गांव की ही साहिना कहती हैं कि बाढ़ ने उसका सब कुछ बहा दिया, सिर्फ तीन-चार किलो चावल बचा है। वे परिवार के साथ भात और नमक खा रही हैं। परंतु उन्हें यह भी चिंता है कि अगर चावल भी खत्म हो गया, तब आगे क्या होगा। 

साहिन बताती हैं, "बाढ़ के बाद कई लोग बेघर हो गए। राहत नाम की चीज नहीं है। कितना खौफनाक मंजर था, अल्लाह ऐसे मंजर दोबारा न दिखाए।" कटिहार के जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्रा कहते हैं कि सभी बाढ़ पीड़ितों तक राहत सामग्री भेजने की कोशिश की जा रही है। स्टेशनों पर रह रहे लोगों के लिए भी राहत सामग्री भेजने का काम शुरू कर दिया गया है। 

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