लखनऊ: जहां मुलायम सिंह यादव के कुनबे में सुलह हो रही है या कलह जारी है, इस पर अभी सस्पेंस बना हुआ है, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सपा सरकार को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रमपति शासन लागू करने की चेतावनी दे डाली। मामला प्रदेश में डेंगू से हो रही मौतों का है। अदालत ने डेंगू से हो रही मौतों के मद्देनजर सरकारी प्रयासों को नाकाफी मानते हुए सरकार से पूछा कि क्यों न प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी जाए।
सुनवाई के दौरान लखनऊ बेंच ने बेहद कड़ा रुख अपनाते हुए 27 अक्टूबर को मुख्य सचिव को तलब किया है। जस्टिस एपी शाही और डीके उपाध्याय की बेंच ने डेंगू से हुई मौतों के लिए सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि यह राज्य में संवैधानिक विफलता का मामला है। कोर्ट ने कहा कि क्यों न संविधान के अनुच्छेद 356 के तरह राज्य सरकार को बर्खास्त कर यहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
न्यायालय ने कहा कि बेहतर होता कि कागजी घोड़े दौड़ाने के बजाय हकीकत में कोई मैकेनिज्म विकसित किया जाता जिससे हर साल डेंगू के प्रकोप से तमाम जानें ना जातीं। न्यायालय ने कहा कि हम इन हलफनामों से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने अधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी द्वारा फंड के संबंध में उठाए गए मुद्दे पर राज्य सरकार की ओर से दाखिल हलफनामों को देखने के बाद राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब आप ही के मांगने के अनुसार केंद्र सरकार ने फंड जारी किया तो उस फंड का पूरा इस्तेमाल क्यों नही हो पाया।
न्यायालय ने प्रमुख सचिव (चिकित्सा व स्वास्थ्य) को चेताया कि उन्होंने अपने हलफनामे में केंद्र सरकार के फंड का पूरा इस्तेमाल न होने का कारण नहीं दर्शाया है जबकि सात अक्टूबर के आदेश में स्पष्ट पूछा गया था कि केंद्र के फंड का पूरा इस्तेमाल नहीं होने के कारण बताए जाएं। कोर्ट ने उन्हें चेताया कि क्या मांगी गई सूचना न देना अदालत के आदेश की अवमानना नही है।
सरकारी नाकामी से हुई मौतों पर न्यायालय ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि यह तो आपराधिक लापरवाही (क्रिमिनल नेग्लिजेंस) है। अदालत ने नाकाम अफसरों पर कोई कारवाई न करने पर भी सरकार को लताड़ लगाई। न्यायालय ने पूछा कि आखिर सरकार नाकाम अफसरों पर कार्रवाई से हिचक क्यों रही है।