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साल 2016 में गर्मजोशी के बाद भारत-पाकिस्तान संबंध निचले स्तर पर

नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान संबंधों में साल 2015 में एक गर्मजोशी देखने को मिली थी, जिससे उम्मीद की जा रही थी कि दोनों पड़ोसी मुल्कों के संबंध नए रूप में सामने आएंगे। उस साल विदेश मंत्री

IANS IANS
Published on: December 30, 2016 8:10 IST
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नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान संबंधों में साल 2015 में एक गर्मजोशी देखने को मिली थी, जिससे उम्मीद की जा रही थी कि दोनों पड़ोसी मुल्कों के संबंध नए रूप में सामने आएंगे। उस साल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्लामाबाद दौरे और फिर दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अचानक लाहौर दौरे के बाद इन उम्मीदों को और बल मिला था, जब वह अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के जन्मदिन और उनकी नातिन के निकाह पर बधाई देने क्रिसमस (25 दिसंबर) पर अचानक लाहौर पहुंच गए थे। हालांकि यह उम्मीद साल 2016 की शुरुआत से ही धूमिल पड़ने लगी और साल के मध्य तक तो हालात पूरी तरह तनावपूर्ण हो गए।

साल 2015 में दोनों देशों के गर्मजोशी भरे संबंधों से लग रहा था कि वे अपने व्यापक द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देने जा रहे हैं। दोनों देशों के विदेश सचिवों की बैठक होने वाली थी, जिसमें बातचीत प्रक्रिया की रूपरेखा तय की जानी थी। इसी बीच जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने 2016 की शुरुआत में ही दो जनवरी को पंजाब के पठानकोट स्थित भारतीय वायुसेना के अड्डे पर हमला कर दिया, जिसमें सात सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई। हालांकि जवाबी कार्रवाई में पांचों हमलावर भी मारे गए। इसके साथ ही पूरी शांति प्रक्रिया बेपटरी हो गई।

भारत ने पाकिस्तान से हमले के साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा और इसके लिए सबूत भी दिए, पर पाकिस्तान ने इसे हमले में जैश की संलिप्तता की दृष्टि से नाकाफी माना। पाकिस्तान ने फरवरी में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया।

भारत ने मार्च में पाकिस्तानी जांचकर्ताओं को पठानकोट दौरे की अनुमति दी।

उसी महीने पाकिस्तान ने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को गिरफ्तार किया और उस पर जासूसी का आरोप लगाया। उसने ईरान के जरिये 'गलती से' पाकिस्तान में प्रवेश किया था। भारत ने जाधव को भारतीय नौसेना का पूर्व अधिकारी बताया।

अप्रैल में विदेश सचिव एस. जयशंकर ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष अजीज अहमद चौधरी से बात की, जब वह अफगानिस्तान पर बातचीत के लिए नई दिल्ली के दौरे पर आए थे। लेकिन तब सरकार ने कहा था कि 'इसे द्विपक्षीय संवाद के तौर पर न लिया जाए।'

जून में पाकिस्तान ने कथित तौर पर भारतीय जांच टीम को पठानकोट हमले की जांच के सिलिसिले में अपने भूभाग का दौरा करने की अनुमति देने पर विचार करने की बात कही थी, लेकिन इस्लामाबाद ने इस संबंध में कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया। बातचीत की उम्मीद अब भी कम ही थी, लेकिन दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अब भी संपर्क में थे।

हालांकि दोनों देशों के बीच संबंध कश्मीर में आठ जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद और बदतर हो गए। द्विपक्षीय संबंध उस वक्त निचले स्तर पर पहुंच गए, जब पाकिस्तान ने कश्मीरी आतंकवाद के 'पोस्टर बॉय' बुरहान को 'शहीद' करार दिया और भारत पर कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया।

बुरहान के मारे जाने के बाद कश्मीर में भड़की हिंसा में करीब 100 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। भारत ने पाकिस्तान पर कश्मीर में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक बयान में पाकिस्तान के साथ बातचीत को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक कहा, "बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते।"

पाकिस्तान को उस वक्त शर्मिदगी का सामना करना पड़ा, जब एक आतंकवादी बहादुर अली ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की और जम्मू एवं कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों पकड़ा गया। पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने एक 'डिमार्च' जारी किया, जिसमें कहा गया, "बहादुर अली ने हमारे प्रशासन के समक्ष माना कि लश्कर-ए-तैयबा के शिविर में प्रशिक्षण के बाद उसने भारत में घुसपैठ की।"

कश्मीर पर दिल्ली में सर्वदलीय बैठक हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से अपने संबोधन में बलूचिस्तान प्रांत में पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाया।

इसके बाद 18 सितंबर का दिन आया, जब कथित तौर पर जैश के आतंकवादियों ने जम्मू एवं कश्मीर के उड़ी में सेना के आधार शिविर पर हमला कर दिया, जिसमें 19 भारतीय सैनिकों की जान चली गई।

इस बार पूरे देश में प्रतिशोध की भावना थी और पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग करने की कूटनीतिक कोशिश भी शुरू हो गई।

इसके बाद 29 सितंबर की तारीख भी आई, जब भारत ने नियंत्रण रेखा के पार जाकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 'सर्जिकल स्ट्राइक्स' किए।

इससे ठीक पहले सुषमा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा था, "यदि हम आतंकवाद को समाप्त करना चाहते हैं तो एक ही रास्ता है, हम अपने मतभेदों को भूलकर एकजुट हों, अपने संकल्प को मजबूत बनाएं और त्वरित प्रतिक्रिया दें.. और यदि कोई देश इस वैश्विक रणनीति का हिस्सा बनने से इनकार करता है तो हमें उसे अलग-थलग कर देना चाहिए।"

मोदी ने दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (दक्षेस) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया, जो इस्लामाबाद में प्रायोजित था। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा राज्य प्रायोजित आतंकवाद का हवाला देते हुए ऐसा किया, जिसके बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे सदस्य देशों ने भी ऐसे ही कारणों का हवाला देते हुए यही कदम उठाया।

भारत ने यह भी कहा कि वह 1960 के सिंधु जल समझौते की समीक्षा करेगा।

पाकिस्तान के लिए हालांकि सर्वाधिक कूटनीतिक अपमानजनक स्थिति अफगानिस्तान की सुरक्षा व विकास पर छठे मंत्री स्तरीय 'हार्ट ऑफ एशिया कांफ्रेंस-इंस्तांबुल प्रॉसेस' में सामने आई। इस बार भारत ने नहीं, बल्कि अफगानिस्तान ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को धिक्कारा।

सम्मेलन में भाग ले रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज को सीधे संबोधित करते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने देश के विकास कार्यो के लिए पाकिस्तान की ओर से 50 करोड़ डॉलर के अनुदान को ठुकराते हुए कहा, "अजीज साहब, यह राशि आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है, क्योंकि शांति के बगैर सहायता के लिए कोई भी राशि हमारे लोगों की जरूरतों को पूरा नहीं करेगी।"

अब जबकि साल 2017 दस्तक देने ही वाला है, मौजूदा हालात को देखते हुए नहीं लगता कि दोनों देशों के संबंध बेहतरी की दिशा में जल्द अग्रसर होंगे।

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