Friday, April 19, 2024
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Good News: ‘श्रृजन’ ने पूरी दुनिया में पहुंचाया कच्छ की गरीब महिलाओं की कारीगरी का हुनर

कच्छ के रिमोट एरियाज़ में रहने वाली महिलाओं की जिंदगी बदल गई है। जिन महिलाओं ने कभी शहर नहीं देखा उनका काम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है। श्रृजन नाम की इस संस्था ने कच्छ के गांव की गरीब महिलाओं की कारगरी के हुनर को पूरी दुनिया में पहुंचाया। पहल

IndiaTV Hindi Desk IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 13, 2017 23:37 IST
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कच्छ (गुजरात): कच्छ के रिमोट एरियाज़ में रहने वाली महिलाओं की जिंदगी बदल गई है। जिन महिलाओं ने कभी शहर नहीं देखा उनका काम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है। श्रृजन नाम की इस संस्था ने कच्छ के गांव की गरीब महिलाओं की कारगरी के हुनर को पूरी दुनिया में पहुंचाया। पहले महिलाएं खुद के लिए कपड़े सिलती थीं, उस पर डिजाइन्स बनाती थीं, अब इन महिलाओं की कारीगरी के लाखों कायल हैं। इससे इनकी कमाई बढ़ीं, जीवनस्तर सुधरा और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई शुरू हुई।

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कच्छ गांव की महिलाएं ट्रेडिशन की तरह एम्ब्रॉयडरी की काम करती आ रही हैं। अब इसका कमर्शियल इस्तेमाल हो रहा है। अब श्रृजन संस्था उनके बनाए कपड़ों की एग्जिबिशन लगाती है, फैशनवीक में मॉडल्स कच्छ की महिलाओं के कपड़े पहन कर रैंप वाक करती हैं। ये महिलाएं तरह तरह की साड़ियां और दूसरे कपड़ों के साथ -साथ बेल्ट, बैग और वाल हैंगिंग्स जैसी 15 से ज्यादा अलग-अलग आइटम्स पर हाथों से एंम्ब्रॉयड्री करती हैं।

इनके बनाए सामान को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का काम श्रृजन संस्था करती है। इन महिलाओं के काम को कितनी प्रसिद्धि मिली है इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि जस्सी बेन नाम की एक महिला को उसकी कारीगरी के लिए यूनेस्को भी सम्मानित कर चुका है।

अच्छी बात ये है कि इन महिलाओं को कहीं जाना नहीं पड़ता, श्रृजन की प्रोडक्शन टीम इनके दरवाजे तक जाती है उन्हें कपड़े, धागे और डिजाइन देती है। ये लोग बताए डिजाइन के हिसाब से हाथों से एम्ब्रॉयडरी बनाती हैं। कभी कभी एक साड़ी तैयार करने में एक साल तक का वक्त लग जाता है।

देखिए वीडियो-

श्रृजन से जुड़ने पर महिलाओं की आमदनी बढ़ी है, घर की हालत में सुधार हुआ। साथ ही एक फायदा ये भी हुआ है कि उन्हें अपने स्किल को और बेहतर बनाने का मौका मिलता है। उन्हें रोज नए-नए डिजाइन्स सीखने को मिलते हैं, इस बात की भी तसल्ली होती है कि उनके काम को दुनिया भर में पहचान मिल रही है। बड़ा फायदा ये भी है कि इन्हें घर बैठे कमाई करने का मौका मिला है।

श्रृजन की शुरुआत चंदाबेन श्रॉफ ने की थी। उन्हें ये आइडिया आज से 48 साल पहले आया था। उस समय कच्छ में भयंकर सूखा पड़ा था और चंदाबेन वहां रिलीफ प्रोजेक्ट के लिए गयीं थीं, वहीं उन्होंने महिलाओं के हाथ का काम देखा, और उसी वक्त गांव की महिलाओं के इस हुनर को पूरी दुनिया में पहुंचाने का फैसला कर लिया।

1969 में ही चंदाबेन श्रॉफ ने मुंबई में गांव की इन महिलाओं के बनाए कपड़ों की एग्जिबिशन लगायी। वो एग्जिबिशन जबरदस्त हिट हुआ। इस एग्जिबिशन से हुई कमाई को रॉ मैटिरियल खरीदने में खर्च किया और उन्हीं महिलाओं के साथ इस काम को कमर्शियल लेवल पर शुरु किया। 48 साल पहले 30 महिलाओं से ये काम शुरु हुआ था और आज कच्छ के सौ गांवों की साढ़े तीन हजार से ज्यादा महिलाएं इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़ी हैं। आज इस संस्था का टर्नओवर करीब पांच करोड़  का है। श्रृजन ने अब इन महिलाओं के साथ मिलकर आसपास के इलाके की 20 हजार से ज्यादा लड़कियों को कढ़ाई की ट्रेनिंग भी दी है।

चंदाबेन श्रॉफ ने कच्छ के एम्ब्रॉयडरी को रिवाइव किया है और वहां के लोगों की इनकम को बढ़ाने में मदद की है। उनकी इन्हीं कोशिशों के लिए 2006 में  उन्हें रोलेक्स अवार्ड दिया गया था। ये अवार्ड पाने वाली वो पहली भारतीय महिला बनीं थीं।

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