Friday, April 19, 2024
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हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है लाल शहबाज़ क़लंदर दरगाह

India TV News Desk India TV News Desk
Published on: February 17, 2017 13:36 IST
  • लाल शहबाज़ क़लंदर का असली नाम मोहम्मद उस्मान मारवंडी था जो 11वीं सदी में पैदा हुए थे। वह सूफ़ी दार्शनिक और कवि थे। वह आज के अफ़ग़ानिस्तान में पैदा हुए थे।
    लाल शहबाज़ क़लंदर का असली नाम मोहम्मद उस्मान मारवंडी था जो 11वीं सदी में पैदा हुए थे। वह सूफ़ी दार्शनिक और कवि थे। वह आज के अफ़ग़ानिस्तान में पैदा हुए थे।
  • कहा जाता है कि मोहम्मद उस्मान मारवंडी हमेशा लाल रंग का चौग़ा पहनते थे इसलिए उनका नाम लाल शहबाज़ क़लंदर पड़ गया। उन्हें झूलेलाल भी कहा जाता है।
    कहा जाता है कि मोहम्मद उस्मान मारवंडी हमेशा लाल रंग का चौग़ा पहनते थे इसलिए उनका नाम लाल शहबाज़ क़लंदर पड़ गया। उन्हें झूलेलाल भी कहा जाता है।
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लाल शहबाज़ क़लंदर के पिता का नाम पीर सय्यद हसन कबीरुद्दीन था। उनके पूर्वज बग़दाद से आए थे।
    लाल शहबाज़ क़लंदर के पिता का नाम पीर सय्यद हसन कबीरुद्दीन था। उनके पूर्वज बग़दाद से आए थे।
  • मशहूर दार्शनिक रुमी लाल शहबाज़ क़लंदर के समकालीन थे। वह मुस्लिम देशों की यात्राएं करते करते शेवान में आकर बस गए जहां 151 साल की उम्र में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
    मशहूर दार्शनिक रुमी लाल शहबाज़ क़लंदर के समकालीन थे। वह मुस्लिम देशों की यात्राएं करते करते शेवान में आकर बस गए जहां 151 साल की उम्र में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
  • लाल शहबाज़ क़लंदर को धार्मिक मामलों की बहुत समझ थी और वह पश्तो, फ़ारसी, तुर्की, अरबी, सिंधी और संस्कृत सहित कई भाषाएं जानते थे।
    लाल शहबाज़ क़लंदर को धार्मिक मामलों की बहुत समझ थी और वह पश्तो, फ़ारसी, तुर्की, अरबी, सिंधी और संस्कृत सहित कई भाषाएं जानते थे।
  • लाल शहबाज़ क़लंदर की दरगाह 1356 में बनाई गई थी। इसमें सिंधी 'काशी टाइल्स' लगे हैं और शीशे का भी काम है। बाद में इसके दरवाज़ो पर सोना मढ़ा जो ईरान के शाह रज़ा शाह पहलवी ने दान किया था।
    लाल शहबाज़ क़लंदर की दरगाह 1356 में बनाई गई थी। इसमें सिंधी 'काशी टाइल्स' लगे हैं और शीशे का भी काम है। बाद में इसके दरवाज़ो पर सोना मढ़ा जो ईरान के शाह रज़ा शाह पहलवी ने दान किया था।
  • लाल शहबाज़ क़लंदर का उर्स (पुण्य तिथी) हर साल मनाई जाती है जिसमें लाखों ज़ायरीन शिरकत करते हैं।
    लाल शहबाज़ क़लंदर का उर्स (पुण्य तिथी) हर साल मनाई जाती है जिसमें लाखों ज़ायरीन शिरकत करते हैं।
  • लाल शहबाज़ क़लंदर के निधन के बाद सिध में हिंदू उन्हें झूलेलाल का अवतार मानने लगे। मशहूर क़व्वाली दमा दम मस्त क़लंदर से ये साफ ज़ाहिर होता है।
    लाल शहबाज़ क़लंदर के निधन के बाद सिध में हिंदू उन्हें झूलेलाल का अवतार मानने लगे। मशहूर क़व्वाली दमा दम मस्त क़लंदर से ये साफ ज़ाहिर होता है।