नई दिल्ली: ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का ग़म मिल सके तो ले उधार’, ‘आवारा हूं, आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’ या फिर ‘दिल का हाल सुने दिलवाला सीधी सी बात न मिर्च मसाला’ जैसे अनेक कालजयी गीतों की रचना करने वाले कविराज शैलेंद्र की आज जयंती है यानी आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था। वे अगर जीवित होते तो 93 के होते। आमफ़हम की ज़ुबान में कविता लिखने वाले शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी में हुआ था। यूं तो उनका परिवार बिहार के भोजपुर का रहने वाला था लेकिन फ़ौजी पिता रावलपिंडी में तैनात थे सो घर बार छूट पीछे छूट गया। बाद में रिटायरमेंट के बाद उनके पिता पिता मथुरा जाकर बस गए थे।
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शुरु से ही शैलेंद्र का रुझान साहित्य की तरफ था जो दिन-ब-दिन बढ़ता गया। वह युवा कवि के तौर पर कवि सम्मेलेनों में हिस्सा भी लेने लगे थे और 'हंस', 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' जैसी पत्रिकाओं में उनकी कविताएं छपने लगी थीं। लेकिन आर्थिक तंगी ने उनकी साहित्य साधना भंग कर दी और वे रेलवे में नौकरी करने लगे। दिलचस्प बात ये है जिस रेल ने उनकी साहित्य साधना भंग की उसी रेल ने उन्हें मुंबई पहंचाया जहां उनकी साधना परवान चढ़ गई। रेलवे में उनकी पोस्टिंग पहले झांसी हुई थी लेकिन बाद में मुंबई हो गई।
शैलेंद्र की राजनीतिक विचारधारा वामपंथी थी और इसी वजह से वह इप्टा एवं प्रगतिशील लेख संघ से जुड़ गए। 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो एक तरफ जहां चारों तरफ जहां जश्न के गुलाल से आसमां लालम लाल हो रहा था वहीं दूसरी तरफ देश-विभाजन से फूटे ख़ून के दरिये से ज़मीन सन रही थी। ऐसे माहौल में उन्होंने एक गीत लिखा था, 'जलता है पंजाब साथियों'। यही वह गीत है जिसे राज कपूर ने पहली बार सुना और शैलेंद्र के मुरीद हो गए। दरअसल जननाट्य संघ के आयोजन में शैलेंद्र जब इसे गा रहे थे तब श्रोताओं में राजकपूर भी मौजूद थे। राज कपूर को गीत इतना पसंद आया कि उन्होंने शैलेंद्र से कहा कि उन्हें ये गीत चाहिये लेकिन शैलेंद्र ने कह दिया कि वे पैसे के लिए नहीं लिखते।
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