Friday, April 19, 2024
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Happy Birthday: बेहतरीन नग्मों से सजी है गुलजार साहब की जिंदगी

गीतकार, फिल्मकार, कवि और लेखक गुलजार का 83वां जन्मदिन है। हिन्दी सिनेमा जगत में फिल्म ‘बंदिनी’ से अपने गीत लेखन की शुरुआत करने वाले गुलजार आज अपनी जिंदगी के 83 साल पूरे कर चुके हैं। उनकी अब तक की यात्रा पर अगर नजर डाली जाए तो उसमें एक ऐसे...

India TV Entertainment Desk Written by: India TV Entertainment Desk
Updated on: August 18, 2017 14:23 IST
gulzar- India TV Hindi
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नई दिल्लीः दुनियाभर में लोकप्रियता हासिल कर चुके गीतकार, फिल्मकार, कवि और लेखक गुलजार का 83वां जन्मदिन है। हिन्दी सिनेमा जगत में फिल्म ‘बंदिनी’ से अपने गीत लेखन की शुरुआत करने वाले गुलजार आज अपनी जिंदगी के 83 साल पूरे कर चुके हैं। उनकी अब तक की यात्रा पर अगर नजर डाली जाए तो उसमें एक ऐसे व्यक्ति की जिंदगी का कैनवस उभरता है, जिसमें जिंदगी के खूबसूरत नग्मों से भरी माला है और उतना ही खूबसूरत मन। उनका लिखा गाना जय हो..!  ऑस्कर अवॉर्ड जीत चुका है और वे लगातार जिंदगी के विभिन्न पहलुओं से जुड़े खास गीतों का लेखन कर रहे हैं। गुलजार ने कई फिल्‍मों के लिए बेहतरीन गाने लिखें है लेकिन उनकी कविताओं में भी जिंदगी के कई रंग उभरकर आते हैं। जिंदगी से बात करने का उनका अंदाज आप को देखना हो तो उनकी कविता ‘हाथ बढ़ा ये जिंदगी, आंख मिलाकर बात कर’ से बेहतर शब्‍द क्‍या हो सकते हैं।

हाथ बढ़ा ये जिंदगी

आंख मिलाकर बात कर

तेरे हजारों चेहरों में

एक चेहरा है, मुझसे मिलता है

आंखों का रंग भी एक सा है

आवाज का अंग भी एक सा है

सच पूछो तो हम दो जुड़वा हैं

तू शाम मेरी, मैं शहर तेरा

हाथ बढ़ा ये जिंदगी

आंख मिलाकर बात कर

गुलजार ने जिंदगी के किस्सों और कहानियों को समझा और उनके गीतकार मन ने जिंदगी की कहानी को कैमरे की भाषा के जरिए पेश किया। ‘परिचय’, ‘अंगूर’, ‘लेकिन’, ‘माचिस’, ‘मौसम’, ‘कोशिश’ और ‘आंधी’ जैसी कई फिल्मों के निर्देशन के साथ गीत लेखन में अपनी खास पहचान बनाने वाले गुलजार आज बॉलीवुड में एक खास जगह बना चुके हैं। फिल्म ‘बंदिनी’ के गाने ‘मेरा गोरा रंग लई ले मुझे श्याम रंग दई दे’…से गीत लेखन का जो दौर गुलजार साहब ने शुरु किया वह आज भी उसी जोश और खरोश के साथ जारी है। सचिन देव बर्मन (बंदिनी), मदन मोहन (मौसम), सलिल चौधरी (आनन्द, मेरे अपने) के लिए गीत लेखन के साथ ही आज के दौर के चर्चित संगीतकार विशाल भारद्वाज (‘माचिस’, ‘ओमकारा’, ‘कमीने’) और ए आर रहमान (‘दिल से’, ‘गुरु’, ‘स्लमडॉग मिलेनियर’, ‘रावण’) के लिए भी सराहनीय  लेखन किया है।

गुलजार के बारे में कहा जाता है कि सूरज के उगने और सूरज के डूबने के बीच का जो समय होता है, उसी में वे लेखन करते है, रात के समय लेखन कार्य करना वे मुनासिब नहीं समझते हैं। इसके साथ ही टेनिस से उनका प्रेम खास चर्चित रहा है और आज भी सुबह 4 बजे उठना और भ्रमण के बाद टेनिस खेलना उनका खास शौक है। गुलजार के बारे में चर्चित है कि एक बार वे इंदौर एक दिन के लिए भ्रमण पर आए, लेकिन अपने टेनिस प्रेम के चलते वह यहां तीन दिन तक रुक गए।

गुलजार के गीतों , उनकी फिल्मों और उनकी काव्य धारा के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा गया है, आज के इस खास दिन पर गुलजार की जिंदगी और बचपन से लगाव पर बात की जा सकती है। दरअसल उम्र के इस पड़ाव पर इतना सुंदर और दिलों को छू लेने वाला लेखन करने वाले गुलजार की सफलता के पीछे सबसे खास बात यह है कि इस बड़े कलाकार के अंदर आज भी एक छोटा बच्‍चा रहता है। उन्होंने अपने अंदर के बचपने को बचाकर रखा है। बच्चों पर उन्होंने किताब नामक फिल्म का निमार्ण किया और आज भी बच्चों से मिलना उनसे बातें करना गुलजार की सबसे पसंदीदा विषय है। टीवी धारावाहिक जंगल बुक के लिए जंगल -जंगल बात चली है जैसा चर्चित गीत भी उनकी कलम से ही निकला है । जैसा खूबसूरत गीत लिखा जो बच्चों में खासा चर्चित हुआ था। बच्चों के साथ बच्चा बनने की कला अगर किसी से सीखनी हो तो गुलजार से बेहतर उदाहरण कोई दूसरा नहीं हो सकता। अपनी बेटी मेघना के हर जन्म दिन पर एक कविता लिखने वाले गुलजार का मन बच्चों से एक खास रिश्ता कायम कर लेता है। बच्चों के लिए कार्य करने वाली भोपाल की समाजसेवी संस्था आरुषी से भी गुलजार जुड़ें है ।

गुलजार आज की पीढ़ी के संगीतकारों में विशाल भारद्वाज को बहुत पसंद करते हैं और वे उनको अपना मानस पुत्र मानते है। गुलजार और की इस सफलता में राखी का धर्म पत्नी के रूप में जुड़ना भी एक खास बात है और बेटी मेघना तो उनके कलेजे का टुकड़ा हैं ही। जिंदगी और लेखन की बात करें तो गुलजार का लेखन पूरी सिद्दत के साथ दिलों पर जादू सा असर करता है , मेरा कुछ सामान,यारा सिली सिली, दो दीवानें शहर में के साथ ही कजरारे कजरारे, चल छैयां छैया..और जय हो जैसे गीत अपने आप में उम्दा होने के साथ ही उनके लेखन की विशेषता को बताते हैं। उम्र के इस  79 वें साल में गुलजार की कलम से जो खास गीत निकला उसमें दिल तो बच्‍चा है जी.. अपने आप में सारी कहानी कहता है।

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