Saturday, April 20, 2024
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प्रतिकूल परिस्थिति कहीं भी उत्पन्न हो, प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता है: राजन

लंदन। चीन के शेयर बाजारों के धराशायी होने से भारतीय शेयर बाजारों में हाल की भारी तबाही के संदर्भ में आरबीआई गवर्नर रघराम राजन ने कल यहां कहा कि चीन बड़ा देश है और वहां के

India TV Business Desk India TV Business Desk
Updated on: August 26, 2015 15:21 IST
चीन के संकट से...- India TV Hindi
चीन के संकट से दुनियाभर में खतरे आशंका

लंदन। चीन के शेयर बाजारों के धराशायी होने से भारतीय शेयर बाजारों में हाल की भारी तबाही के संदर्भ में आरबीआई गवर्नर रघराम राजन ने कल यहां कहा कि चीन बड़ा देश है और वहां के हर घटनाक्रम का प्रभाव स्वाभाविक है। राजन ने साथ ही मुश्किलों में फंसी  अर्थव्यवस्थाओं  की कठिनाइ दूर करने के उनके केंद्रीय बैंकों पर बहुत अधिक दबाव डालने के प्रति आगाह भी किया है। 

चीन का आर्थिक संकट गहराने से वहां के शेयर बाजारों में सोमवार को 8 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी थी। उसके असर से भारत में मुंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स कारोबार के दौरान 1700 अंक से भी नीचे चला गया था। राजन ने चीन के चलते उत्पन्न आर्थिक नरमी के संबंध में कहा वास्तविक आंकड़ों के बारे में बहुत अनिश्चितता है, आंकड़ों को सामने आना है। लेकिन चीन बढ़ा देश है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण बन गया है। विश्व भर में कही की भी प्रतिकूल घटना का शेष दुनिया पर किसी न किसी तरह का असर होता ही है। 

भारत को वैश्विक वृद्धि की गाड़ी बनने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है: राजन 

आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत तेजी से वृद्धि करता है तब भी उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था की गाड़ी के रूप में चीन की जगह लेने में लंबा समय लगेगा। उनकी यह टिप्पणी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि चीन की आर्थिक वृद्धि दर की गिराट से हाल के दिनों में दुनिया भर के बाजारों में घबराहट है। इन घटनाओं को देखते हुए भारत में कहा जा रहा है कि यह संकट भारत के लिए एक अवसर है क्यों कि विश्व को को वृद्धि की एक वैकल्पिक गाड़ी की जरूरत हो सकती है। 

यह पूछने पर कि क्या चीन की जगह भारत वृद्धि की नयी गाड़ी बन सकता है, राजन का जबाव था , भारत, :आर्थिक: आकार में चीन के एक चौथाई या पांचवें हिस्से के बराबर है। यदि हम वृद्धि दर के लिहाज से चीन को पछाड़ दें तब भी इसका परिणामी प्रभाव काफी लंबे समय तक अपेक्षाकृत बहुत कम होगा। 

विश्व बैंक के पास उपलब्ध ताजा आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद :जीडीपी: 17,000 अरब डालर से अधिक है और चीन की अर्थव्यवस्था 10,000 अरब डालर तथा भारतीय अर्थव्यवस्था 2,000 अरब डालर की है। 

सोमवार को बाजार में गिरावट के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर जोर दिया था और कहा था कि मौजूदा वैश्विक संकट को भारत के लिए अवसर में बदलने की कोशिश होनी चाहिए। कल वित्त मंत्री अरण जेटली ने भी कहा था कि वैश्विक बाजार के उतार-चढ़ाव चिंता का विषय नहीं हैं बल्कि भारत के लिए तेज सुधार का मौका प्रदान करते हैं। जेटली ने कहा था कि विश्व का जिम्मा शक्तिशाली गाड़ी पर था जो अब बहुत तेज नहीं दौर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को अब वैकल्पिक गाड़ी की जरूरत है। 

उन्होंने बीबीसी से कहा यह पहले वित्तीय बाजारों पर असर डालता है और फिर उसका असर व्यापार पर पड़ता है। इसलिए हर किसी को इसकी चिंता है। लेकिन आपको हर चीज के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराने के प्रति भी सावधान रहना चाहिए। हालांकि इससे पहले वित्त मंत्री अरण जेटली ने भारत में कल कहा था कि वैश्विक बाजार की उठा-पटक भारत के लिए चिंता का विषय नहीं है।

एक अन्य वैश्विक आर्थिक संकट की आशंका के बारे में पूछने पर राजन ने कहा अब तक जो मैंने देखा है उसके आधार पर ऐसा मानने की कोई वजह नहीं है कि हम एक और संकट की कगार पर हैं ... लेकिन हमें उन अस्थाई पहलुओं के प्रति सतर्क रहना है जो तैयार हो रहे हैं। 
राजन ने आगाह किया कि केंद्रीय बैंकों पर संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को दुरस्त करने का जिम्मा भी नहीं मढ़ा जाना चाहिए। बीबीसी वल्र्ड न्यूज पर इंडिया बिजनेस रिपोर्ट को दिए साक्षात्कार में भारतीय केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कहा कि आर्थिक समस्याओं का निदान सिर्फ सुधार के जरिए ही हो सकता है। केंद्रीय बैंकों के जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप में अच्छाई के बजाय बुराई ज्यादा है। 

रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन ने स्वीकार किया कि मौजूदा माहौल में उनकी स्थिति कोई जटिल नहीं है क्योंकि ज्यादातर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के उलट भारत में छह प्रतिशत के करीब उच्च मुद्रास्फीति है। वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्य नीतिगत दर में तीन बार की गई कटौती के बावजूद नीतिगत ब्याज दर :रेपो: 7.25 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है। उन्होंने कहा अपने देश में मेरे सामने मुद्रास्फीति जैसी परंपरागत समस्याएं हैं इसलिए हमें अभी उसी पर ध्यान देना है। राजन ने कहा लेकिन दूसरे देशों में आपके सामने कुछ ऐसी समस्याएं हो सकती हैं जिससे निपटना केंद्रीय बैंक की क्षमता से बाहर हो। जैसे जनांकिकीय बदलाव, उत्पादकता में गहरा बदलाव ... और ऐसी समस्याएं जिनसे अन्य तरीकों शायद ज्यादा अच्छी तरह निपटा जा सकता है।

 
राजन ने कहा लेकिन यदि अन्य जरियों का उपयेाग नहीं किया जा रहा है या ऐसी धारणा है कि उनमें ज्यादा समय लगेगा और आप प्राथमिक गाड़ी के तौर पर केंद्रीय बैंक के साथ ही काम कर रहे हैं। ऐसे मेें आपके सामने ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं जो अच्छे के बजाय नुकसान ज्यादा करें। ब्याज दर शून्य पर आ जाता है तो आपके लिए नए औजारों का उपयेाग मुश्किल हो जाता है। 

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